जठराग्नि का अर्थ:-
पाचक अग्नि को ही जठराग्नि कहा जाता है और बाकी सभी अग्नियों की तुलना में यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. यह मुख्य रुप से पेट और आंतों के बीच नाभि के आस पास रहती है. यह अग्नि अपनी गर्मी से बहुत जल्दी ही भोजन को पचा देती है. हम जो कुछ भी खाते हैं उसे यह अग्नि छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़कर उन्हें शरीर के अनुरूप बना देती है.
जठरग्नि कितने प्रकार की होती है ?
चार प्रकार की:-
1- समग्नि
2- विषमअग्नि
3- मन्दाग्नि
4- तिक्षणाग्नि
यह चारों किन कारणो से होती हैं ?
1)कफ के ज्यादा हो जाने से जठराग्नि मन्दी होती है।
2) वात के ज्यादा होने से जठराग्नि विषम होती है।
3) पित के अधिक होने से जठराग्नि तीक्ष्ण होती है ।
4) तीनों दोषों के समानत रहने से जठराग्नि सम होती है ।
चारों प्रकार की अग्नियों में उत्तन अग्नि कौनसी होती है ?
समाग्नि, क्योकि समग्नि वाले का सारा खाया पिया भोजन आराम से पच जाता है।
विशमाग्नि होने से क्या होता है ?
विष्माग्नि से किया हुआ भोजन कभी अच्छी तरह पचता है तो कभी नही।
इन्ही अग्नि वालों को आफारा, दर्द, पेट का भारी रहना, दस्त और आंतो में गुड़ गुड़ होना संग्रहणी(ibs) होता है। जठराग्नि मंद होने के लक्षण है।
तिक्षणाग्नि होने से क्या होता है ?
तीक्ष्ण अग्नि वाला जो खाता पिता है, पह सहज से और बहुत जल्दी पच जाता है।
मन्दाग्नि होने से क्या होता है ?
मन्दाग्नि वालों को थोड़ा सा खाना भी हजम नहीं होता। उसे कय होती है, लार गिरती है, गलानि रहती है, सिर और पेट भारी रहते हैं। जिसके कारण फिर आगे चलकर कब्ज हो जाती है।
देखें- कब्ज का इलाज
जिस अग्नि से भोजन जल्दी पच जाए उसे अच्छी कहते है लेकिन तीक्ष्ण अग्नि को अच्छी क्यों नही कहते?
सम अग्नि वाला अगर भूख लगने पर भी थोडी देर नहीं खाता, तो वह अग्नि कुछ हानि नही करती , परन्तु तिक्षणाग्नि को तो समय पर खाना न मिलने से पित्त के विकार पैदा कर देती है जैसे भस्मक रोग। अग्नि पहले अन्न को पचाती है अन्न न मिलने पे रस को फिर धातुओं को जिस से पेप्टिक अल्सर कहते हैं। उसके बाद शरीर को को पचाने लग जाती है जिसके कारण अधिक दिन बुखे रहने से आदमी मर जाता है। वह पेट की अग्नि ही होती है जो अंदर अंदर उसे जलाती है। इसी वजह से तिक्षणाग्नि बुरी कही जाती है।
इसीलिए सबसे अच्छी समाग्नि होती है।
जठराग्नि बढ़ाने की आयुर्वेदिक दवा
रात को त्रिफला चूर्ण लेके सोने से जठराग्नि तेज होती है।
जठराग्नि तेज करने के उपाय
त्रिकटु के सेवन से, इसबगोल से, लवण भास्कर चूर्ण से, छाछ में अजवाइन जीरा भून के डाल के पीने से, अदरक आदि से भी तेज होती है। यह सब जठराग्नि तेज करने की दवा है।
देखें छाछ के गुण
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Meaning of Jathragni:-
The digestive fire is called Jatharagni and it is the most important of all the other fires. It mainly resides around the navel between the stomach and intestines. This fire digests food very quickly with its heat. Whatever we eat, this fire breaks it into small pieces and makes them suitable for the body.
How many types of Jathragni are there?
Four types:-
1- Samagni
2- Vishamagni
3- Mandagni
4- Tikshagni
For what reasons do all these four happen?
1) Due to the excess of Kapha, there is a slowdown in the gastrointestinal tract.
2) Jathragni is abnormal due to excess of Vata.
3) Due to excess of bile, the gastric fire becomes sharp.
4) The balance of all the three doshas makes the gastric fire equal.
Which is the best fire among the four types of fire?
Samagni, because all the eaten and drunk food of the Samagni person is easily digested.
What happens when there is an illusion?
Food cooked with Vishmagni is sometimes digested well and sometimes not.
These people of Agni get restless, pain, heaviness in the stomach, diarrhea and accumulation of jaggery in the intestines (ibs). It is a symptom of slow digestion.
What happens when there is Tikshanagni?
The one who eats father with strong fire, gets digested easily and very quickly.
What happens when there is depression?
People with heartburn cannot digest even a little food. He has nausea, drooling, nausea, heaviness in the head and stomach.
The fire with which food is digested quickly is called good, but why is the sharp fire not called good?
If the person with Samagni does not eat for some time even when he is hungry, then that Agni does not cause any harm, but Tikshagni does not get food on time, it causes disorders of the bile such as Bhasmak disease. Fire first digests the food, when the food is not available, the juice then the metals, which is called peptic ulcer. After that, the body starts digesting food, due to which a person dies due to being hungry for a long time. It is the fire of the stomach that burns him inside. For this reason Tikshagni is called bad.
That's why there is the best Samagni.
Ayurvedic medicine to increase gastric fire:-
Taking triphala powder while sleeping at night intensifies the gastric fire.
Consumption of Trikatu, Isabgol, Lavan Bhaskar Churan, Ajwain cumin seeds fried in buttermilk, drinking lentils, ginger etc. makes it faster. All these are medicines to increase the digestive fire.