👉पत्ते वाले शाक, सिरका, छाछ, क्रोध, जिनको मोटापा हो और जो पूरा दिन खली बैठे रहने से,
👉पाचन किर्या ठीक न रहने पहले का खाना बिना अच्छे से पचे ही फिर दोबारा भोजन करने से,
👉और विरुद्ध भोजन करने से, क्षमता से अधिक भार उठाने से, क्षमता से अधिक परिश्रम करने से यह बीमारी होती है।
Uric acid symptoms वातरक्त के लक्षण
सबसे पहले यह रोग जब होने को होता है तब यह खुद ही दर्शा देता है की यह होने वाला है।
👉उस से पहले शरीर में या तो बहुत ज्यादा पसीना आएगा या फिर बिलकुल ही बंद हो जाता है,
👉काले काले चकते पड़ने शुरू हो जाते हैं,
👉शरीर में शून्यता आती है स्पर्श का ज्ञान नहीं होता,
👉किसी प्रकार का घाव होना और उसमे बहुत अधिक दर्द होना,
👉संधिया शिथिल हो जाती है,
👉शरीर आलस्य से भर जाता है,
👉शरीर में दाने से हो जाते हैं,
👉हाथ पैरों की छोटी बड़ी संधियों में सुई जैसी चुबने की सी पीड़ा होती है।
👉शरीर ऐसे रहता है जैसे पूरा टूटने को सा रहता हो,
👉पूरा शरीर भारी सा रहता है,
👉शरीर में खुजली, हडियों में पीड़ा,
👉शरीर में या जोड़ों में जलन महसूस करना फिर कुछ ही देर में अपने आप खत्म हो जाना,
👉शरीर में चीटियां सी चलती है पैरों का सुन्न पड़ जाना या जिसे हम कहते हैं सो जाना।
यह सब लक्षण इस बीमारी के होते है जो पहले ही दर्शा देता है। अगर ऐसे में कोई मुर्ख मनुष्य नहीं संभलता और अपना उपचार शुरू नहीं करवाता या जिन कारणों से यह रोग होता है उनका त्याग नहीं करता तो वह स्वयं यमराज को बुलाने का काम करता है।
जब यह रोग शरीर में अच्छे से हो जाता है उस के बाद शरीर में कुछ इस प्रकार के लक्षण होते है:-
uric acid ke lakshan kya kya hai
👉नींद का नहीं आना,
👉खाने का मन ना होना,
👉सांस लेने में दिकत या उस से संभंधित बीमारी होना,
👉मॉस का सड़ना,
👉सर दर्द या सर के रोग होना,
👉बेहोशी होना, पीड़ा होना, बार बार प्यास लगना,
👉बुखार आना, किसी किसी चीज का मोह होना,
👉हिचकी आना, चलने में असमर्थ हो जाना,
👉अँगुलियों का टेढ़ा हो जाना, विसर्प, पाक, भ्रम होना,
👉जलन होना, मर्म स्थानों में जकड़न होना, tumour बन जाना आदि इसके लक्षण होते है।
इस रोग को कभी हलके में नहीं लेना चाहिए जल्द से जल्द इलाज करवाना चाहिए। अगर यह रोग एक वर्ष से पुराना हो जाता है तो बहुत मुश्किल से ठीक हो पता है।
Types of uric acid :-
वाताधिक वातरक्त के लक्षण (वात के दोष बढ़ने से)
इस में वात दोष की अधिकता हो, जिसमे दर्द हो, फड़फड़ाता हो, सूजन हो, रुक्ष हो, थोड़ा काले रंग का हो, सूजन कभी घट जाये कभी बढ़ जाये। नाड़ियों में और उँगलियों की संधियों में संकोच (सिकुड़ना) होना, अंगो में जकड़न होना, उनमे अधिक पीड़ा होना, ठण्ड सहन न होना, और ठण्ड में इस रोग का बढ़ना, स्तम्भ होना, कम्पन होना, और श्यून्यता आना आदि लक्षण दिखाई दें तो समझना चाहिए की यह बीमारी वात के दोष से बढ़ने की वजह से हुई है।
रक्ताधिक वातरक्त के लक्षण (जिसमे रक्त दोष की अधिकता होती है )
उसमे सूजन, अति पीड़ा, ताम्बे जैसा वर्ण होना, और उसमे चिमचिमाहट होती है, स्नेह युक्त या फिर रुक्ष उपचार से शान्ति नहीं मिलती, और उस जगह सूखापन रहने के साथ साथ खुजली भी होती है।
पित्ताधिक वातरक्त के लक्षण (जिसमे पित्त दोष की अधिकता होती है)
उसमे उस जगह जलन होती है, मोह होता है, पसीना आना, चकर या बेहोशी होना, बार बार प्यास का लगना, और इसमें रोगी से स्पर्श सहन नहीं होता। इसमें भी पीड़ा होती है और सूजन होक पक जाना और छूने पे गरम महसूस होता है उस जगह पे।
कफाधिक वातरक्त के लक्षण ( जिसमे कफ दोष की अधिकता होती है )
उसमे अंगो में सूखापन, भारीपन, श्यून्यता ( सुन्न हो जाना), चिकनाहट भरी और स्पर्श से ठंडी लगती है।
इसके बाद द्वंदज और त्रिदोष होती है, कोई भी दो दोष के मिले जुले लक्षण होने पे वो द्वंदज कहलाती है और तीन दोष मिलने पे त्रिदोष कहलाती है।
वाताधिक का इलाज :-
गिलोय का काढ़ा बना के उसमे शुद्ध गुग्गुल को मिला के सुबह खाली पेट सेवन करने से वताधिक नष्ट होता है।
पित्ताधिक का इलाज :-
लाल चन्दन, गम्भीर की छाल, द्राक्षा, अमलतास, मुलेठी, क्षीरकाकोली सब को बराबर मात्रा में लेके इसका काढ़ा बना ले फिर इसको उतार छान कर ठंडा होने के बाद देशी मिश्री और
शहद मिला के सेवन करें सुबह खाली पेट।
परमल के पत्ते,
हरड़, बहेड़ा,
आंवला, शतावरी, कुटकी, गिलोय, सबको बराबर मात्रा में लेके काढ़ा बना के सुबह खाली पेट सेवन करें।
कफाधिक का इलाज:-
साधारण पानी के साथ आधी चमच हरड़ का चूर्ण खाएं।
आंवला, हल्दी और नागरमोथा का काढ़ा बना के सुबह खाली पेट सेवन करें।
How to cure permanently
गुडुची (गिलोय) यह अमृत है। इसको अगर घी के साथ सेवन करें तो वात दोष को ठीक करे (आधी चमच गिलोय चूर्ण दो चमच घी),
अगर गुड़ के साथ सेवन करें तो
कब्ज को ठीक करे(गिलोय के चूर्ण के ऊपर गुड़ को गोल गोल घुमा कर बेर जितनी गोलियां बना लें),
मिश्री के साथ सेवन करें तो पित्त दोष को ठीक करे(रात को आधी चमच गिलोय चूर्ण और आधी चमच मिश्री को एक गिलास पानी में भिगो दें सुबह उठ के पी लें या फिर आधी चमच गिलोय चूर्ण के साथ आधी चमच मिश्री को सीधा पानी के साथ भी फांक सकते है),
शहद के साथ सेवन करे तो
कफ दोष को शांत करे(एक चमच गिलोय चूर्ण को दो चमच शहद के साथ पेस्ट बना के खाएं),
एरंड के तेल के साथ सेवन करें तो
यूरिक एसिड को ठीक करे( गिलोय का काढ़ा बना के उसमे फिर एरंड के तेल की एक चमच डाल के खाली पेट सेवन करें),
सोंठ के साथ सेवन करे तो आमवात याने के
आर्थराइटिस को ठीक करे(
सोंठ और गिलोय को बराबर मात्रा में लेके चूर्ण करके इन दोनों का काढ़ा बना के सेवन करें)
इसका साल में तीन चार महीने में भी सेवन कर लिया जाये तो यह बीमारी कभी नहीं होगी।
नोट:- जिस दोष के बढ़ने के कारन जो भी दोष हुआ हो उस दोष को कम करने वाली चीजे हमे खानी चाहिए।