Uric acid causes, symptoms and treatment | Uric Acid/Gout ka ilaj

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Causes symptoms and treatment of uric acid


 

URIC ACID





What is uric acid

आगे दिए जाने वाले कारणों से शरीर का सारा खून बिगड़ जाता है और बिगड़ा हुआ खून निचे की और जाकर के दोनों पावों में जाके इक्कठा हो जाता है।  वहां यह खून  वात याने वायु से मिल जाता है।  इस बीमारी में वायु की प्रबलता इतनी होती है की इसका नाम ही वातरक्त कहा गया है। फिर यह रक्त वायु की राह को रोक देता है। तब राह वायु की रुक जाने से शरीर में वेदना पैदा हो जाती है। यह रोग सबसे पहले पैरों में एकत्रित होक हाथों और पैरों की छोटी संधियों में जाके रुक जाता है और वहां सूजन और दर्द करता है।  फिर और भी आगे जब यह रोग बढ़ता है तब कफ  के साथ मिल के पूरे शरीर में फ़ैल जाता है और वेदना करता है। जिसे गठिया गाउट भी कहते हैं। 

Uric acid causes यूरिक एसिड क्यों बढ़ता है बॉडी में 

👉नमकीन पदार्थों के अधिक सेवन से, 
👉गरम पदार्थो के अधिक सेवन से, 
👉खट्टे पदार्थो के अधिक सेवन से, 
👉चरपरे पदार्थों के अधिक सेवन से, 
👉चिकने पदार्थों और खारे पदार्थो के बहुत ज्यादा खाने से, 
👉सड़ा हुआ बासी मॉस खाने से, 
👉कुल्थी, उड़द, बैंगन, गन्ना, दही, मछली, शराब इनके अधिक सेवन से, 
👉दिन में सोने से, रात में देर रात तक जागने से, 
👉तिल की खली खाने से, मूली अधिक खाने से, 
👉पत्ते वाले शाक, सिरका, छाछ, क्रोध, जिनको मोटापा हो और जो पूरा दिन खली बैठे रहने से, 
👉साइकिल मोटर साइकिल पे उबड़ खाबड़ रास्तों पे चलने से, बहुत अधिक पैदल चलने, 
👉पाचन किर्या ठीक न रहने पहले का खाना बिना अच्छे से पचे ही फिर दोबारा भोजन करने से, 
👉और विरुद्ध भोजन करने से, क्षमता से अधिक भार उठाने से, क्षमता से अधिक परिश्रम करने से यह बीमारी होती है। 

Uric acid symptoms वातरक्त के लक्षण 

सबसे पहले यह रोग जब होने को होता है तब यह खुद ही दर्शा देता है की यह होने वाला है।  

👉उस से पहले शरीर में या तो बहुत ज्यादा पसीना आएगा या फिर बिलकुल ही बंद हो जाता है, 
👉काले काले चकते पड़ने शुरू हो जाते हैं, 
👉शरीर में शून्यता आती है स्पर्श का ज्ञान नहीं होता, 
👉किसी प्रकार का घाव होना और उसमे बहुत अधिक दर्द होना, 
👉संधिया शिथिल हो जाती है, 
👉शरीर आलस्य से भर जाता है, 
👉शरीर में दाने से हो जाते हैं, 
👉हाथ पैरों की छोटी बड़ी संधियों में सुई जैसी चुबने की सी पीड़ा होती है। 
👉शरीर ऐसे रहता है जैसे पूरा टूटने को सा रहता हो, 
👉पूरा शरीर भारी सा रहता है, 
👉शरीर में खुजली,  हडियों में पीड़ा, 
👉शरीर में या जोड़ों में जलन महसूस करना फिर कुछ ही देर में अपने आप खत्म हो जाना, 
👉शरीर में चीटियां सी चलती है पैरों का सुन्न पड़ जाना या जिसे हम कहते हैं सो जाना। 

यह सब लक्षण इस बीमारी के होते है जो पहले ही दर्शा देता है। अगर ऐसे में कोई मुर्ख मनुष्य नहीं संभलता और अपना उपचार शुरू नहीं करवाता या जिन कारणों से यह रोग होता है उनका त्याग नहीं करता तो वह स्वयं यमराज को बुलाने का काम करता है। 

जब यह रोग शरीर में अच्छे से हो जाता है उस के बाद शरीर में कुछ इस प्रकार के लक्षण होते है:-

uric acid ke lakshan kya kya hai


👉नींद का नहीं आना, 
👉खाने का मन ना होना, 
👉सांस लेने में दिकत या उस से संभंधित बीमारी होना, 
👉मॉस का सड़ना, 
👉सर दर्द या सर के रोग होना, 
👉बेहोशी होना, पीड़ा होना, बार बार प्यास लगना, 
👉बुखार आना, किसी किसी चीज का मोह होना, 
👉हिचकी आना, चलने में असमर्थ हो जाना, 
👉अँगुलियों का टेढ़ा हो जाना, विसर्प, पाक, भ्रम होना, 
👉जलन होना, मर्म स्थानों में जकड़न होना, tumour बन जाना आदि इसके लक्षण होते है। 

इस रोग को कभी हलके में नहीं लेना चाहिए जल्द से जल्द इलाज करवाना चाहिए। अगर यह रोग एक वर्ष से पुराना हो जाता है तो बहुत मुश्किल से ठीक हो पता है। 


Types of uric acid :- 

वाताधिक वातरक्त के लक्षण (वात के दोष बढ़ने से)

इस में वात दोष की अधिकता हो, जिसमे दर्द हो, फड़फड़ाता हो, सूजन हो, रुक्ष हो, थोड़ा काले रंग का हो, सूजन कभी घट जाये कभी बढ़ जाये।  नाड़ियों में और उँगलियों की संधियों में संकोच (सिकुड़ना) होना, अंगो में जकड़न होना, उनमे अधिक पीड़ा होना, ठण्ड सहन न होना, और ठण्ड में इस रोग का बढ़ना, स्तम्भ होना, कम्पन होना, और श्यून्यता आना आदि लक्षण दिखाई दें तो समझना चाहिए की यह बीमारी वात के दोष से बढ़ने की वजह से हुई है।  

रक्ताधिक वातरक्त के लक्षण (जिसमे रक्त दोष की अधिकता होती है )

उसमे सूजन, अति पीड़ा, ताम्बे जैसा वर्ण होना, और उसमे चिमचिमाहट होती है, स्नेह युक्त या फिर रुक्ष उपचार से शान्ति नहीं मिलती, और उस जगह सूखापन रहने के साथ साथ खुजली भी होती है। 

पित्ताधिक वातरक्त के लक्षण (जिसमे पित्त दोष की अधिकता होती है)

उसमे उस जगह जलन होती है, मोह होता है, पसीना आना, चकर या बेहोशी होना, बार बार प्यास का लगना, और इसमें रोगी से स्पर्श सहन नहीं होता। इसमें भी पीड़ा होती है और सूजन होक पक जाना और छूने पे गरम महसूस होता है उस जगह पे। 

कफाधिक वातरक्त के लक्षण ( जिसमे कफ दोष की अधिकता होती है )

उसमे अंगो में सूखापन, भारीपन, श्यून्यता ( सुन्न हो जाना), चिकनाहट भरी और स्पर्श से ठंडी लगती है। 

इसके बाद द्वंदज और त्रिदोष होती है, कोई भी दो दोष के मिले जुले लक्षण होने पे वो द्वंदज कहलाती है और तीन दोष मिलने पे त्रिदोष कहलाती है। 

वाताधिक का इलाज :-

गिलोय का काढ़ा बना के उसमे शुद्ध गुग्गुल को मिला के सुबह खाली पेट सेवन करने से वताधिक नष्ट होता है। 

पित्ताधिक का इलाज :-

लाल चन्दन, गम्भीर की छाल, द्राक्षा, अमलतास, मुलेठी, क्षीरकाकोली सब को बराबर मात्रा में लेके इसका काढ़ा बना ले फिर इसको उतार छान कर ठंडा होने के बाद  देशी मिश्री और शहद मिला के सेवन करें सुबह खाली पेट। 

परमल के पत्ते, हरड़, बहेड़ा, आंवला, शतावरी, कुटकी, गिलोय, सबको बराबर मात्रा में लेके काढ़ा बना के सुबह खाली पेट सेवन करें। 

कफाधिक का इलाज:-

साधारण पानी के साथ आधी चमच हरड़ का चूर्ण खाएं। 

आंवला, हल्दी और नागरमोथा का काढ़ा बना के सुबह खाली पेट सेवन करें। 

How to cure permanently

गुडुची (गिलोय) यह अमृत है। इसको अगर घी के साथ सेवन करें तो वात दोष को ठीक करे (आधी चमच गिलोय चूर्ण दो चमच घी), 
अगर गुड़ के साथ सेवन करें तो कब्ज को ठीक करे(गिलोय के चूर्ण के ऊपर गुड़ को गोल गोल घुमा कर बेर जितनी गोलियां बना लें), 
मिश्री के साथ सेवन करें तो पित्त दोष को ठीक करे(रात को आधी चमच गिलोय चूर्ण और आधी चमच मिश्री को एक गिलास पानी में भिगो दें सुबह उठ के पी लें या फिर आधी चमच गिलोय चूर्ण के साथ आधी चमच मिश्री को सीधा पानी के साथ भी फांक सकते है), 
शहद के साथ सेवन करे तो कफ दोष को शांत करे(एक चमच गिलोय चूर्ण को दो चमच शहद के साथ पेस्ट बना के खाएं), 
एरंड के तेल के साथ सेवन करें तो यूरिक एसिड को ठीक करे( गिलोय का काढ़ा बना के उसमे फिर एरंड के तेल की एक चमच डाल के खाली पेट सेवन करें), 
सोंठ के साथ सेवन करे तो आमवात याने के आर्थराइटिस को ठीक करे( सोंठ और गिलोय को बराबर मात्रा में लेके चूर्ण करके इन दोनों का काढ़ा बना के सेवन करें) 


इसका साल में तीन चार महीने में भी सेवन कर लिया जाये तो यह बीमारी कभी नहीं होगी। 
नोट:-  जिस दोष के बढ़ने के कारन जो भी दोष हुआ हो उस दोष को कम करने वाली चीजे हमे खानी चाहिए।  

Uric acid range levels:- 

Normal values range between 3.5 to 7.2 miiligrams per deciliter (mg/dL)


Ayurvedic treatment of uric acid

सभी प्रकार के यूरिक एसिड की चिकित्सा  
👉ताल मखाना और गिलोय को बराबर मात्रा में लेके इसका काढ़ा बनाये और सुबह शाम खाली पेट सेवन करें मात्रा 21 दिन में यह बीमारी ठीक होती है। यह यूरिक एसिड की रामबाण दवा है।

👉मुंडी के चूर्ण को 1 चमच शहद और आधी चमच घी के साथ चाटें उसके ऊपर गिलोय काढ़ा पियें मात्रा एक महीने में रक्त वात की बीमारी ठीक होती है। 


👉अडूसा, गिलोय और अमलतास का गुदा तीनो बराबर मात्रा में लेके मोटा मोटा पीस करके इसका काढ़ा बनाये, इसके बाद इसको उतार छान कर ठंडा होने के बाद इसमें एक चमच एरंड के तेल की मिला के पियें तो सम्पूर्ण शरीर में फैला हुआ वातरक्त भी अगर होगा तो वह भी निसंदेह ठीक होता है।  

👉हरड़ के चूर्ण करके उसके ऊपर गुड़ को गोल गोल घुमा कर बेर जितने आकर की गोली बनाकर इसका सेवन गिलोय के काढ़े के साथ करें तो जांघ तक भयंकर फैली हुई यह बीमारी ठीक होती है। 

Uric acid Treatment

👉 मंजीठ, हरड़, बहेड़ा, आंवला, कुटकी, वच, दारू हल्दी, गिलोय और नीम की छाल इन सभी नौ औषधियों को बराबर मात्रा में लेके काढ़ा बना के सुबह खाली पेट सेवन करें इस से वातरक्त, खाज खुजली, खून की विकार और कुष्ठ रोग ठीक होता है।  इसे लघुमंजिष्ठादि क्वाथ कहते है। 

👉 गिलोय, सोंठ और धनिया बराबर मात्रा में लेके काढ़ा बनाये और सुबह खाली पेट सेवन करें तो एक महीने में यह बीमारी नष्ट होती है। 


 Medicine for uric acid

योगराज गुग्गुल वटी:-

सोंठ, पीपरामूल, चव्य, चित्रक, काली मिर्च, भुनी हुई हींग, अजमोदा, सिरस, सफ़ेद जीरा, कला जीरा, रेणुका के बीज, इंदरजौ, पाढ़, बाय विडिंग , गज पीपरी, कुटकी, अतीस, भारंगी की जड़, वच, मरोड़फ़ली, तेजपति, देवदारु, कुठ, रसना, पीपरी, नागरमोथा, सेंधा नमक, इलाइची, गोखरू, हरड़धनिया, बहेड़ा, आंवला, दालचीनी, खस की जड़, जोखार, और  तिल इन सबको बराबर मात्रा में लेके कूट पीसकर छान लो। 

इस चूर्ण के बराबर शुद्ध गुग्गुल लेकर इसमें मिला दो, और इसमें घी डाल डालकर खूब घाटों और तीन तीन ग्राम की गोलियां बना लो। 

यह योगराज गुग्गुल है।  यह बाजार में भी बना बनाया आता है।  यह बहुत अध्भुत है। अब बताता हूँ इसको लेने के तरीके और इसके गुण। 

रास्ना के काढ़े के साथ इसको लेने से वात रोगों को नष्ट करता है। 
दारुहल्दी के काढ़े के साथ इसको लें तो सभी प्रकार के प्रमेह को नष्ट करता है। 
गिलोय के काढ़े साथ इसको लें तो वात रक्त को नष्ट करता है। 
गौ मूत्र के साथ लेने से पाण्डु रोग याने की खून की कमी या ब्लड प्लेटलेट डाउन में फायदा करता है। 
शहद के साथ लेने से मोटापे का नाश करता है। 
नीम का काढ़ा बना के उसके साथ लें तो सफ़ेद या काले कोढ़ ( एक प्रकार की स्किन की बीमारी) में फायदा होता है। 
मूली के काढ़े के साथ लो पूरे शरीर के दर्द को दूर करता है। 
पाढ़ल की जड़ के काढ़े के साथ लो तो चूहे के विष उतारने में लाभ होता है।
त्रिफला के काढ़ा के साथ लो तो उग्र नेत्रों के रोगों में भी लाभ करता है। 
पुनर्नवादि का काढ़ा बना के अगर उसके साथ लें तो पेट के सभी रोगो का इलाज होता है। 

तो आपने देखा एक दवा को लेने के कितने सारे तरीके हैं और कितने रोगों में फायदा करता है। 


lep chikitsa


👉तीन चार चमच सौंफ लेके 300-400ml सरसों के तेल में डाल के पकाओ। 

👉इसी तरह मुलेठी या लाल पुनर्नवा को भी पका सकते हो । फिर इस तेल को उतार छान कर रख लो इस तेल को खूनवात वाली जगह पे लगाने से बहुत लाभ होता है। 

👉काले तिलो को पीस कर कढ़ाई में भून लो। फिर इसमें इतना दूध डाल लो के पकाओ की गाढ़ा पेस्ट बन जाये।  फिर इसको उतार कर हल्का गरम गरम दर्द वाली जगह पे लगाने से शान्ति होती है। 

👉बकरी का दूध, गेहूं का आता और घी तीनो को आपस में मिला के गधा पेस्ट बना के लगाने से इस बीमारी में आराम मिलता है।

 

👉सौ बार धोये हुए घृत याने के देशी गाये का ताज़ा माखन लो, उसमे ठंडा पानी डाल दो और थोड़ा सा ऊँगली से हिलके फेंक दो। ऐसे सौ बार करने से सौ बार धोया हुआ घृत कहलाता है और इसीको एक हजार बार ऐसे करलें तो वो हजार बार धोया हुआ घृत कहलाता है।  इसे लगाने से जिन संधियों में जलन के साथ दर्द होता हो लाभ होता है। इस घिरत को बवासीर के मस्सों पे लगाने से कुछ ही दिन में मस्से झाड़ जाते है। कुष्ठ के ऊपर भी लगाने से बहुत लाभ होता है।  इसके इतने लाभ है की लिखना असंभव है।


How to control

जौ, लाल साठी धान के चावल, निवारि धान के चावल, गेहूं, चना, मूंग, अरहर, मोठ, भेड़, बकरी, भैंस, और गाय के दूध, पोइ, मकोय, बथुआ, करेला, चौरई, पटोलपत्र, आंवला, अदरक, देशी मिश्री, मुनक्का, माखन, का सेवन करना चाहिए। यह सब यूरिक एसिड का घरेलू इलाज हैं। 


Food avoid 

दिन में सोना, अग्नि से ताप, धुप में घूमना, व्यायाम करना, सम्भोग करना, उरद, कुल्थी, सेम, केराव, विरुद्ध भोजन,  दही, गन्ना, मूली, शराब, पान, तिल, टमाटर, कटु(तीखे), गरम, पचने में भारी, और नमकीन पदार्थों का सेवन और जिन जिन कारणों से यह होता वह सब नहीं करना चाहिए। 




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