80 Types of Vata Dosh Disorder | Vaat के 80 प्रकार के रोग | वात दोष की बीमारियां

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80 Types of Vata Dosh Disorder


वात के 80 प्रकार के रोग 


आयुर्वेद में मुख्यतः तीन तरह के दोष बताये गए हैं वात , पित्त और कफ। 


जब जब ये असंतुलित होते हैं तब तब शरीर में रोग पैदा होते हैं। 


अकेले वात  से जुड़ें 80 प्रकार के रोग हैं जिनके बारे में आज चर्चा करेंगे और उनके मॉडर्न नाम के साथ लिखेंगे 


1. पादसुप्तता | Numbness in Feet 

Numbness in Feet


पैरों का सुन्न होना। अक्सर बूढ़े लोगों में देखने को मिलता है। इसमें पैरों के तलवों पे ऐसे लगता है जैसे चीटियां चल रही हों।  इसे अंग्रेजी में Numbness in Feet कहते हैं। 


2. विपादिका | Cracked Heels


Crack Heels


हाथ-पैर फटना। वैसे इसमें देखा गया है हाथ बहुत काम लोगो के फटते देखें गए हैं लेकिन पैरों की एड़ियां जरूर फट जाती हैं।  


3. पादशूल | Pain In Legs

PAIN IN LEGS


पैरों में दर्द होना। पैरों में दर्द होना। यह दर्द एड़ी से लेकर घुटनो तक हो सकता है। उसे ही पादशूल कहा गया है। पाद याने पैर और शूल याने दर्द। 


4.पादभ्रंश | Foot Drop

FOOT DROP


पैरों पर नियंत्रण न हो पाना। पैरों के निचे का जो तलवा उसपे नियंत्रण नहीं रहता है वो एक दम लटक जाता है।  वैसे आजकल यह बीमारी बहुत ही कम देखने को मिलती है। 


5. नखभेद | Breakage Of Nails

BREAGAGE OF NAILS


नाखूनों का टूटना। इसमें नाखूनों बिलकुल सूखे सूखे हो  जाते हैं।  ख़राब होने लगते हैं।  कहीं कहीं से टूटने शुरू हो जाते हैं।  नाख़ून सड़ने लग जाते हैं। 


6. वात खुड्डता | Ankle Pain

टखने और टखने के आस पास के हिस्से में दर्द का बने रहना। इसे अंग्रेजी में Ankle pain कहते हैं। इसी रोग में जंघाओं की संधियों में भी दर्द होता है। 


7. गुल्फ ग्रह (गुल्फ प्रदेश का जकड़ जाना) | Stiff Ankle | मोच आना  

एड़ी के जो आस पास का हिस्सा होता है उसमे दर्द और सूजन का होना। आम भाषा में अगर बात की जाए जो जो हमारे पैरों में मोच आती है यह वही है। 


8. पिडिकोद्वेष्टन | Pain in Legs

पैर की पिंडलियों में ऐंठन होना या दर्द का होना। कई बार जो युवा अचानक से भागा दौड़ी करता है तो उसके पिंडलियों और साथलों (Thighs) में बुरख बंद जाती है याने के जकड़न सी हो जाती है। और चलते समय दर्द भी करती हैं।  


9. ग्रध्रसि | Sciatica  

यह बहुत दर्दनाक होता है। कमर के निचले हिस्से निकलती हुई नसें कूल्हों से निकलती हुई पैरों तक बहुत ज्यादा दर्द करती हैं।  रात को सोने तक नहीं देती सीधे लेटने पर भी बहुत दर्द होता है।  यह अक्सर जो सारा दिन आराम से सौफे पे या दो तीन तकिये लगाए पड़े रहते हैं या कुर्सी पे बैठने वाले लोग हैं उनके होता है। 


10 . जानू भेद | A Type Of Knee Pain 

जानू मतलब घुटना होता है। घुटनों के ऊपर वाली हड्डी में दर्द होना या वहां के जोड़ों में दर्द होना। अक्सर बुजुर्गों के घुटनो में बहुत दर्द होता है। भेद मतलब होता है चीरने के सामान पीड़ा होना। 



11. जानुविश्लेष | Dislocation Of Knee

इसमें जो घुटने की कटोरी होती है वो स्थिर रहने की बजाय अपनी जगह से खिसक जाए।  इसमें भी बहुत दर्द होता है। 


12. उरूस्तंभ | Rigidity in Thighs

घुटनो से ऊपर और जंभाओं के बीच के हिस्से को उरू कहते हैं याने की Thighs. इसमें जकड़न आना, दर्द होना या सुन्न होना आदि लक्षण होते हैं। 


13. ऊरूसाद | Weakness in Thighs

ऊरूप्रदेश याने के Thigh  के आसपास के हिस्से में अवसाद यानी शिथिलता का अनुभव होना। शिथिल मतलब होना जिसके अंदर शक्ति ही ना बची हो। 


14. पांगुल्य | लंगड़ापन

इसका मतलब होता हैं लंगड़ापन।  यह ज्यादातर जन्मजात देखा गया है। इसके ठीक होने के आसार बिलकुल ना के बराबर है। 


15. गुदभ्रंश | Anal Prolapse

गुदा का बाहर निकलना या फिरआम भाषा में इसको कांच का निकलना बोलते हैं।  अपनी शक्ति से अधिक बल लगाने से या बलपूर्वक मल निकालने से या फिर गुदा का शिथिल हो जाने से यह अक्सर हो जाती है।  


16. गुदा प्रदेश में दर्द | Pain in Anal Region

मल द्वार के अंदर या आस पास के हिस्से में दर्द होना। यह दर्द कठिनाई से मल निकलवाने की वजह से भी होता है।


17. वृषणोत्क्षेप | वृषणाक्षेप | Scrotal pain | Testicular Pain

यह अंडकोषों की एक बीमारी होती है।  इस रोग में अंडकोष ऊपर की और चढ़ जाते हैं।


18. शेफस्तंभ | Urinary bladder Problem

इसमें जो हमारी मूत्र की इन्द्रियां होती हैं उनमे जकडाहट आ जाती है।  मूत्र करने में समस्या होती है।  मूत्र के वेग को धारण करके रखने की वजह से होता है। मूत्र इंद्री नाभि के निचे और लिंग के ऊपर रहती हैं। पेडू भी कहते हैं।  


19. वंक्षणानाह | Inguinal Pain | Groin Pain

वंक्षण प्रदेश याने के जंघा का जो मूल स्थान होता उसके आस पास बंधन के समान पीड़ा होना।


20. श्रोणिभेद | Pelvic Pain

कमर से निचे कूल्हे वाली हड्डी में और मूत्राशय मलाशय वाली जगहों पर हड्डी टूटने के सामान दर्द होना। 


21. विड्भेद | Diarrhoea

जब किसी इन्फेक्शन की वजह से या किसी अन्य वजह से दस्त लग जाते हैं। मल स्थान के आसपास तोडऩे जैसी पीड़ा भी हो सकती है। 


22. उदावर्त | Reverse Of Vata Dosh

पेट की गैस ऊपर की ओर आना जिसके कारन चेस्ट पैन भी हो जाता है या फिर सर दर्द भी हो जाता है। 


23. खंजता | Claudication

कूल्हों से निचे वाले हिसे में पैरों में ऑक्सीजन का या रक्त का ना पहुंच पाना जिसके कारण पैरों का असक्षम होक लंगड़ापन आजाता है। यह हाथों में भी हो सकता है लेकिन बहुत कम देखा जाता है। 


24. कुब्जता | Hump Back

कूबड़ा होना। अगर यह रोग जन्म से हो तो ठीक भी नहीं होता है।  पीठ के पीछे ऊपर की और एक उभार का आना।  


25. वामनत्व | Dwarfness

वैसे तो यह जन्मजात ही देखा गया है, इसका मुख्यतः कारण माँ बाप बौने होते हैं तब उनका बच्चा भी बौना पैदा होता है।  या फिर अन्य कारण  यह भी हो सकता है जब बच्चा माँ के गर्भ में होता है तब वह माँ वात को बढ़ाने वाली चीजों का अत्यधिक सेवन कर लेती है जिसके कारण  उसका बच्चा बौना पैदा होता है। 

26. त्रिकास्थि  | Lumbar Spine Pain

Lumbar spine


या फिर पृष्ठ ग्रह कहा जाता है। रीड की हड्डी में निचे वाली हड्डी जो होती है जिसपे हम बैठते हैं उसमे दर्द होना। इसको अंगेजी में lumbar pain भी कहा जाता है और यहीं पर अक्सर स्लिप डिस्क का दर्द होता है। 

27. पाश्र्वमर्द | Rib Pain

Rib pain


पार्श्व प्रदेश का अर्थ होता है पसलियां। जो हमारे बगल के निचे वाला हिस्सा होता है उसमे दर्द होना।  


28. उदरावेष्ट | Gastric Problems

पेट में अफरा बन जाना, पेट में गैस बन जाना, पेट में ऐंठन होना, पेट को अंदर दबाएं तो tight महसूस होना। 

29. दिल बैठने जैसा महसूस होना | Pain in Heart

pain in heart



इसमें जो पेट में गैस बानी होती है वह छाती में पहुँच जाती है जिसके कारन हृदय में दर्द होना शुरू हो जाता है।  हृदयाघात याने हार्ट अटैक भी  हो जाता है।  


30. हृदद्रव | Palpitations Triger Heart Disease

हृदद्रव | Palpitations Triger Heart Disease


हृदय में द्रवता अर्थात् दिल की धकानो का तेज होना। यह अक्सर थोड़ा बहुत भी परिश्रम करने पर, सीढियाँ चढ़ने पर, चिंता होने पर या शरीर में वात अधिक बढ़ने पर धड़कनो की गति तेज हो जाती है। 

31. वक्षोद्घर्ष | Chest Pain

वक्षोद्घर्ष | Chest Pain


वक्षप्रदेश याने के छाती में घिसने के समान पीड़ा। जब पेट की वायु याने के गैस छाती में जाती है तब वहां दर्द होना शुरू है। इसी को अंग्रेजी में चेस्ट पैन कहते हैं। 

32. वक्षोपरोध | Acute Coronary Syndrome

वक्षोपरोध | Acute Coronary Syndrome


वक्ष:स्थल की गतियां मतलब फुफ्फुस व हृदय गति में रुकावट का अनुभव होना। कई बार ऐसा भी प्रतीत होता  है के बीच बीच में दिल धड़कन स्किप हो गयी है। 

33. वक्ष:स्तोद | Chest Pain

छाती में सुई चुभने जैसी पीड़ा। इसमें इस प्रकार से छाती में दर्द होता है जैसे कोई नुकीली चीज बार बार कोई चुभा रहा हो। 

34. बाहूशोष | Pain in Hand

बाहु मतलब की भुजा और शोष मतलब होता है सूखा।  भुजा से अंगुली तक मांसपेशियों में दर्द, ऐंठन व जकडऩ का हो जाना, हाथ ऊपर न उठना और आगे चलकर हाथ का बिलकुल सुख जाना। 


35. ग्रीवा स्तम्भ/ग्रीवशुन्दनम् | Cervical Spondelitis

गर्दन के आस पास का हिस्सा जकड़ जाना, इसमें सुन्नापन्न आजाता है। गर्दन दाएं बाएं नहीं हिल सकते।  ज्यादा ऊँचा तकिया लगा के सोने की वजह से या एक तरफ गर्दन को ज्यादा देर रखने की वजह से भी यह रोग हो जाता है। 

36. मंथा स्तम्भ | मन्या स्तम्भ | Wry Neck | Torticollis 

इस रोग में गर्दन पूरी जकड जाती है। यह रोग बच्चों में भी देखने को खूब मिलता है। इस रोग में कई बार गर्दन एक तरफ ज्यादा जुखाव हो जाता है।  इसमें ज्यादातर गर्दन के पीछे वाले हिस्से में लघु मस्तिष्क के नीचे के हिस्से में जकडऩ व पीड़ा होना। 


37. कंठोध्वंस | गला बैठ जाना | Sore Throat


ऊँचे ऊँचे स्वर में रोने से या बोलने से या बहुत ज्यादा बोलने से गला बैठ जाता है यह वायु का ही रोग होता है। इसीलिए आयुर्वेद में कहा भी गया है की किसी भी चीज की अति नहीं करनी चाहिए अन्यथा वातदोष बढ़ जाता है। 


38. हनुभेद : ठोडी में पीड़ा | The gaping or parting asunder of the jaws


इस रोग में ठोड़ी में टूटने के सामान पीड़ा होती है। 



39. ओष्ठभेद : होंठों में दर्द | Pain in Lips

जैसा की नाम से पता चल रहा है इस रोग में होठों में पीड़ा होती है। कई बार सुई चुभने जैसी पीड़ा भी होती है। 



40. अक्षिभेद : आंखों में दर्द | Pain in the Eyes

सर पर गर्म पानी डालते रहने से, या धुप में अधिक रहने से या अन्य अन्य कारणों से वात कुपित हो जाता है जिस से की आखों में दर्द होता है। 



41. दन्तभेद : दांतों में पीड़ा | Tooth Pain

दांत की सभी प्रकार की तकलीफें ज्यादातर वायु के कोप से ही होती है। इस रोग में तेल का कँवल धारण करवाया जाता है। 



42. दन्तशैथिल्य : दांतों का हिलना | Tooth Mobility

इस रोग में दांत हिलने लग जाते हैं। वायु कुपित होने के बाद हड्डीयों का दुखना या दांतों का हिलना शुरू हो जाता है। 



43. मूकत्व : गूंगापन | Dumb 

इस रोग में बोला नहीं जाता आवाज चली जाती है। यह जन्मजात भी हो सकता है और बाद में भी हो सकता है। 



44. बाक्संग : आवाज बंद होना | Speechlessness

इस रोग में जब प्राण वायु कुपित होती है तब आवाज निकालनी बंद हो जाती है। ऐसा अत्यधिक डर, भय या ख़ुशी के कारण देखा जाता है। 



45. कषायास्यता : मुंह कड़वा होना | Bitter Taste in Mouth

इस रोग में वायु कुपित की वजह से पाचन शक्ति की गड़बड़ी हो जाती है जिस से मुंह का स्वाद कड़वा ही रहता है। 



46. मुखशोष : मुंह का सूखना | Xerostomia


इस रोग में मुंह बार बार सूखता रहता है। हालांकि यह प्यास के वेग को रोक कर रखने से भी होता है और पिट बढ्ने के कारण भी देखा गया है। जब शरीर में गर्मी बहुत ज्यादा बन जाती है उसमे भी यही दिक्कत देखने को मिलती है। अतः आपको देखना चाहिए अपने शरीर के लक्षण के हिसाब से की यह किस कारण हुआ है। 



47. अरसज्ञता : रस का ज्ञान न होना |  Ageusia

इस रोग में जिह्वा को कोई भी रस का पता ही नहीं चल पाता। मुख और जीभ में नीरसता आ जाती है। 



48. घ्राणनाश : गंध का ज्ञान न होना | Anosmia

इस रोग में हमे नाक किसी भी चीज का ना दुर्गन्ध आती और ना ही सुगंध आती है। 



49. कर्णमूल : Mumps | कान के निचले हिस्से में सूजन होना 


कान की जड़ में दर्द(कान के पीछे वाला हिस्सा कंठ से कुछ पूर्व का भाग तक) कनफेड़ रोग इसी में होता है।



50. अशब्द श्रवण : ध्वनि न होते हुए भी शब्दों का सुनना | Tinnitus 

 इस रोग में कानों में अजीब अजीब आवाजें सुनाई देती रहती है। आयुर्वेद में इसे कर्णनाद भी कहा गया है। 



51. उच्चै:श्रुति : ऊंचा सुनना | Hearing Loss

इस रोग में सामने वाले को ऊँचा सुनाई देता है।  वैसे यह रोग बुढ़ापे में देखने को ज्यादा मिलता है। बुढ़ापे में वातदोष बढ़ा रहता है। 



52. बहरापन | Deafness | सुनाई नहीं देना 


यह जन्मजात भी हो सकता है या फिर रूखा भोजन आदि खाने से या अन्य किसी चीज की वजह से वातबढ़ जाए तो कानो से सुनाई देना कम हो जाता है या बिलकुल बहरा हो जाता है। अक्सर यह रोग बुढ़ापे में ज्यादा देखा जाता है क्यूकी बुढ़ापे में तो वैसे ही वात दोष बढ़ा रहता है।  



53. वत्र्म स्तंभ : Lagophthalmos | आंखों की पलकें ऊपर- नीचे नहीं होना। 


वत्र्म याने के पलख और स्तम्भ याने जकड़न, वही के वही रुक जाना। इस रोग में पलख नहीं झपकती, पलख झपकती हैं तो पूरी तरह से नहीं झपक पाती।  



54. वत्र्म संकोच : Ptosis 


वायु जब बढ़ कर नेत्रो में जाती है तो पलकों को सिकुड़ देती है जिसके कारण आंखें खोलने में परेशानी होने लगती है। इसमे आगे चलकर आखें खोलने में भी कठिनाई होती है। 



55. तिमिर : आंखों से धुंधला व कम दिखाई देना | Incipient Stage of Cataract


तिमिर एक प्रकार का वायु का आखों का रोग है है जिसमे शुरुवात में धुंधला दिखाई देता है फिर आगे चलकर अंधेरा भी आ जाता है कुछ दिखाई नहीं देता।  



56. नेत्रशूल : Pain in the Eyes | आंखों में दर्द होना।


नेत्र याने की आखें और शूल याने के दर्द। इसके भी अनेक कारण हो सकते हैं। नींद भरपूर ना लेने के कारण या रात भर जागने के कारण भी वातदोष कुपित हो जाता है इसके कारण भी आखों में दर्द होता है। कई अन्य चीजों के कारण भी आखों में दर्द होता है लेकिन उसके पीछे वायु दोष ही कारण है। 



57. अक्षि व्युदास : Squint | भेंगापन


इस रोग को भेंगापन भी कहते हैं। क्यूकी इस रोग में वायु के कारण आखें टेढ़ी हो जाती हैं। यह रोग जब बहुत पूरना हो जाता है तो असाध्य हो जाता है। बच्चों में खासकर रोग यह देखा जाता है।  



58. भ्रूव्य दास : Drooping Eyebrows | Brows Ptosis भौंहों का टेढ़ा होना।


इस रोग में जो भौहें होती हैं वो टेढ़ी हो जाती हैं उनका एक तरफ झुकाव हो जाता है। इसे हम भौहों का पक्षाघात भी कह सकते हैं क्यूकी ऐसा हाल पक्षाघात में ही होता है। 



59. शंखभेद : Ear Pain | कनपटी में दर्द।


औस में अधिक रहने से, जेएल क्रीडा अधिक करने से, कान अधिक खुजाने से, या उसमे रुक्षता आने से वायु कुपित हो कर कई कान के कई तरह के काशसध्या रोग उतपन कर देती है। कई बार यह कान की पीड़ा अशनीय होती है। 


60. ललाट भेद : Forehead Ache | आंखों के ऊपर वाले हिस्से में पीड़ा।


शारीर में वायु बढ्ने के कारण फिर वह माथे में चली जाती है और वहाँ जाकर और कुपित होकर शूल उतपन कर देती है। 



61. शिर : सिरदर्द | Headache


वैसे तो सर दर्द वात  पित्त और कफ किसी भी दोष की वजह से हो सकता है लेकिन इस रोग में वात दोष तो रहेगा ही रहेगा वह वायु ही है जो पित्त या कफ को सर में ले जाता है। 



62. केशभूमिस्फुट : Scalp Eruption | बालों की जड़ों में विकृति होना।


इस रोग में वायु कुपित होकर सिर में चली जाती है और बालों की जड़ों में विकर्ति पैदा कर देती है। कहीं कहीं से गंजपान दिखना, चर्म रोग उतपन होना, खुजली होना, रूसी जैसा होना आदि विकृति होती हैं।



63. अर्दित : मुंह का लकवा | Facial Paralysis


इस रोग में केवल मुंह पे लकवा लग जाता है। लकवा चाहे कहीं का भी हो वह वात दोष का ही रोग होता है। 


64. एकांग घात : इसमें पेशी शिथिल हो जाती है।


65. सर्वांगघात : यह जन्मजात मस्तिष्क का रोग है।


66. आक्षेपक : हाथ पैरों को जमीन पर पीटना व बार-बार उठाना, मस्तिष्क में वातनाड़ी दूषित होने पर मिर्गी जैसे झटके आना।


67. दंडक: शरीर में वात दृष्टि से पूरे शरीर की मांसपेशियां डंडे की तरह स्थिर हो जाती हैं। इसे दंडापतानक कहते हैं।


68. तम: तमदोष: Irritation | झुंझलाहट होना।


चिड़चिड़ापन, झुंझलाहट, शरीर में उचाटी मचना यह सब वात और पिट के बढ्ने से ही होते हैं। लेकिन इसमे वातदोष की प्रधानता ज्यादा होती है। इस मे व्ययक्ति जब तामसिक भोजन का अत्यधिक सेवन करता है तब उसके अंदर तमो गुण भी बढ़ जाता है जिसके कारण वातदोष कुपित हो जाता है।  



69. भ्रम: चक्कर आना | Vertigo


चक्कर आना कई बीमारियों के लक्षण भी होता है जैसे आमवात, वात संग्रहणी, सूर्यवात (जिसमे सूर्य चढ़ते समय सिर दर्द शुरू होता है ढलते ढलते कम होता है) लेकिन यह साब वात से संबन्धित रोग ही हैं। चक्कर आना अपने आप में बीमारी नहीं है बल्कि किसी बीमारी का लक्षण होता है।   



70. वेपथु: | Parkinson | कंपकंपी होना | कंपवात


इसका वर्णन चरक में वेपथु के नाम से किया गया है इसमे एक अंग पर या सम्पूर्ण अंग कापते हैं योग्र्त्नकर आदि ऋषियों ने कंपवात नाम दिया गया है। जब के माधव साहिता में सर्वांग कम्प (पूरे शरीर में कंपन) और शिरोकम्पा (सिर में कंपन) की विशेषता है। वैसे यह सारे रोग एक ही जैसे होते हैं इन सब में शरीर में या सिर में या किसी हिस्से में कंपन होती है। 



71. जंभाई : उबासी आना |  Excessive Yawning

इस रोग में बार बार जम्हाई आती रहती है। नींद के वेग को रोक के रखने से वायु कुपित होती है जिसके बाद बार बार में जम्हाई आती रहती है। 



72. हिचकी | Hicups

ठंडी चीजें खाने से या तीखी चीजे खाने से या जोर जोर से हसने से या अन्य कारणों से अंदर से हिक हिक की आवाज आती है जिसे आयुर्वेद में हिक्का रोग बोलते हैं। 



73. विषाद्: दुखी रहना | Depression

कई बार अधिक चिंता की वजह से वायु कुपित हो जाती है जिसके कारण हम अधिक सोचते रहते हैं फिर जिसके कारण और भी अधिक दुखी रहते हैं। 



74. अतिप्रलाप: बिना बात के निरर्थक बोलना।


75. शरीर में रूक्षता: रुखापन | Dry Skin

 जब हम बहुत अधिक रुखा भोजन करते हैं उस से भी वायु कुपित हो जाती है और पूरे शरीर में रखापन आ जाता है। 

76. शरीर में परुषिता: शिथिलता आना।


77. शरीर का काला होना।


78. शरीर का रंग लाल होना।


79. नींद न आना | Insomnia


इस रोग के बारे में सभी जानते ही होंगे लेकिन यह नहीं जानते की जिन लोगों को नींद नहीं आती और करवट बदलते हैं रातों को उनका वात  दोष बढ़ा होता है। 


80. चित्त स्थिर न रहना




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