IBS(Irritable Bowl Syndrome) Causes, Symptoms and Treatment in Hindi | Sangrahni ka Ilaj

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IBS SANGRAHNI KA ILAJ



IBS- Irritable Bowl Syndrome | संग्रहणी/ग्रहणी रोग


ग्रहणी क्या है?

षष्ठी पित्तधरा नाम या कला परिकीर्तिता । 
पक्वामाशयमध्यस्था ग्रहणी सा प्रकीर्त्तिता” ।

नाभि के ऊपर जठराग्नि के बल पर स्थित और परिवृद्ध छठी पित्त को धारण करने वाली जो वहां कला है उसे ही ग्रहणी(duodenum) कहा गया है।  

और यह अमाशय और पित्तधरा कला पकाशय के बीच में स्थित है। 

ग्रहणी का काम क्या होता है?

अपक्क अन्न को धारण करती है तथा जो अन्न पच जाता है उसे निकाल देती है। 

Grahni Duodenum


ग्रहणी रोग क्या है?

अतिसार (Diarrhea, दस्त) रोग जब हो रखा हो उसके ठीक हो जाने के बाद या फिर ठीक ना भी हो तो भी रोगी की जठराग्नि मंद रहने पर और अहित पदार्थों के सेवन से जठराग्नि जो के पहले से ही मंद है वो और ज्यादा दूषित हो जाती है जिस से की संग्रहणी (IBS) रोग हो जाता है। 

अतिसारेषु यो नातियत्नवान ग्रहणोंगद: ।।

तस्य स्यादग्नि विध्वंसकनेन्ययस्य सेविते।   -वाग्भट

अतिसार(Diarrhea, दस्त) की उपेक्षा से ही ग्रहणी रोग की उत्पति होती है, इस रोग मुर्ख मनुष्य दस्तों को गमभीर रोग ना मान कर हलके में लेके पथ्य भोजन नहीं करता और पथ्य चिकित्सा नहीं करता उसे ग्रहणी रोग हो जाता है। 

और जठाग्नि को कुपित करने वाले आहार का सेवन करता है स्वस्थ मनुष्य को भी यह रोग हो जाता है। 

संग्रहणी (IBS) रोग कैसे होता है?

ग्रहणी का बल अग्नि है और अग्नि ग्रहणी के बल पर ही स्थित है इसीलिए जब कभी भी अग्नि दूषित होगी तो यह कला ग्रहणी भी दूषित होगी। और जब जब यह दूषित होगी तब तब यह रोग होगा।

ग्रहणी के बिगड़ने का सामान्य लक्षण 

वात, पित्त आदि दोषों के बिगड़ने के कारण या तीनो दोषों के बिगड़ने के कारण ग्रहणी कला दूषित हो जाती है, भोजन आदि को बिना पचाये ही या कभी पचा के आगे कर देती है जिस से की कभी मल पका हुआ मल पीड़ा युक्त आता है, कभी द्रव मल आता है, तो कभी द्रव मल आता है तो कभी दुर्गन्ध युक्त आता है या बंधा हुआ गाढ़ा आजाता है। 

ग्रहणी के पुरवरूप 

जब यह रोग होने वाला होता है तो कुछ लक्षण पहले ही दिखाना शुरू कर देता है। जैसे की 

प्यास का अधिक लगना, शरीर में आलस्य आना, कमजोरी आना, शरीर में जलन होना, शरीर का भारी होना और बहुत से विलम्भ से भोजन किये हुए अन्न का पाक, हाथ पैरों में सूजन,  बुखार आना, पेट में मल का रुका रहना होना लक्षण होते है। 

अथार्त ये लक्षण दिखाई दें तो समझ लेना की यह रोग होने वाला है और अपनी चिकित्सा शुरू कर लेना चाहिए ताकि यह रोग उग्र ना होके जल्दी ठीक हो सके। 

 

ग्रहणी और संग्रहणी में अंतर क्या है ?

जब ग्रहणी आमवायु का संग्रह करती है संग्रहणी या फिर संग्रह ग्रहणी कहते हैं।  वैसे तो इनमे शास्त्रों में बहुत कम अंतर बताया है लेकिन संग्रहणी,  ग्रहणी रोग से थोड़ी ज्यादा कष्टदायक है। आगे जो चिकित्सा बताई जाएगी वो दोनों में ही काम आती है। 


संग्रहणी कितने प्रकार की होती है ?

वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज, घटीयन्त्राख्या ग्रहणी और आम ग्रहणी 


Causes of IBS in Hindi | ग्रहणी होने के कारण 

वातज ग्रहणी के होने के कारण

👉अत्यंत कटु(चरपरा, तीखा), तिक्त (कड़वा, गिलोय, नीम जैसा), कषाय(कैसेला), रुक्ष(रुखा बिना घी तेल का)

👉दूषित पदार्थों के अधिक सेवन करने से

👉आहार की क्षमता से अधिक या फिर कम भोजन(डाइटिंग) निरंतर करने से

👉मल मूत्र आदि 13 तरह के वेगों को शरीर में धारण करके रहने से 

👉अधिक मैथुन करने से

वायु कुपित होकर जठराग्नि को दोषी कर देती है और वातज ग्रहणी उत्पन कर देती है। 


पित्तज ग्रहणी के होने के कारण 

👉अत्यंत कटु(कड़वा) पदार्थ खाने से 
👉खाना सही से ना पचने से 
👉विदाही भोजन करने से (जिनके खाने के बाद जलन सी होती है जैसे चाट, पकोड़ी, समोसा या जंक फ़ूड मिर्च मसालेदार भोजन)
👉अम्लीय और क्षारीय पदार्थ के अत्यधिक सेवन करने से 

पित्त दोष शरीर में बढ़ कर अग्नि को नष्ट कर देता है जिस प्रकार उष्ण हुआ जल भी अग्नि को भुजा देता है।  यह आयुर्वेद में उदहारण बहुत सोच समझ कर दिया गया है कई लोगों में अवधारणा है की पित्त वर्धक चीजें तो अग्नि को बढ़ा देती हैं तो अग्नि भुज क्यों गयी इसीलिए कहा गया है की शरीर में पित्त बढ़ने से जलन बढ़ती है और कुपित हुआ पित्त दोष अग्नि को भुजा देता है। 


कफज ग्रहणी के होने के कारण 

👉अत्यंत गुरु(पचने में भारी) पदार्थों के के सेवन करने से

👉बहुत ज्यादा स्निग्ध पदार्थों के सेवन से जैसे तेलिया चीजें, घी युक्त चीजें, हलवा, मिठाई, लड्डू आदि के अधिक सेवन से 

👉शीतल पदार्थ जो स्पर्श में भी ठन्डे हों और जिनकी तासीर ठंडी हो उनके अधिक सेवन से (फ्रिज का पानी, आइस क्रीम आदि)

👉बहुत अधिक भोजन करने से और खासकर उसके बाद सोने से 

👉पूरे दिन खाली बैठे रहने से, दिन में सोने से

कफ दोष शरीर में बढ़ जाता है और अग्नि को नष्ट कर देता है जिसके कारण कफज ग्रहणी हो जाती है। 



Symptoms of IBS in Hindi | ग्रहणी होने के लक्षण

वातज ग्रहणी होने के लक्षण

👉मल का सूखा निकलना
👉अन्न का दुःख के साथ पचना और पेट में गैस बन ना
👉अंगो में भी रखापन रहता है
👉कंठ(गला) और मुख(मुंह) का सूखा रहना 
👉क्षुधा(भूख) और तृषा(प्यास) का अधिक लगना 
👉कानो में  शब्द सुनाई पड़ना
👉आखों के आगे अंधकार छा जाना जो के खासकर कमजोरी की वजह से होता है 
👉फेफड़ों, छाती और गला इस क्षेत्र में दर्द रहना 
👉हृदय में पीड़ा होना और शरीर में दुर्बलता आना 
👉मुंह का बेस्वाद होना, जिसे विरस भी कहते हैं। 
👉गुदा में कैंची जैसे काटने की पीड़ा का होना 
👉सभी प्रकार के रसों के भोजन खाने की इच्छा होना, कभी खट्टा कभी मीठा कभी नमकीन कभी कड़वा कभी तीखा। 
👉मन में ग्लानि का बने रहना 
👉खाये हुए अन्न के पचने के बाद गैस बन जाना और फिर जब पुनः भोजन करें तो गैस का ठीक हो जाना

👉इस रगी को पेट में गाँठ, हृदय रोग, लिवर के रोग, होने की शंका रहती है, और बहुत विलम्भ के साथ दुःख के साथ मल निकलता है, कभी शुष्क मल निकलता कभी थोड़ा थोड़ा, कभी आधा पचा हुआ सा मल निकलता है, शब्द करता हुआ मल निकलता है, मल में झाग दिखाई देते हैं, बार बार शौच जाना पड़ता है। 

यह सब लक्षण हो तो समझना वात आपके शरीर में बढ़ गया है जिसकी वजह से वातज ग्रहणी हुआ है। 

पित्तज ग्रहणी होने के लक्षण 

👉पित्तज रोगी को अजीर्ण की याने खाना ना पचने की समस्या बानी रहती है 
👉नीले और पीला रंग से युक्त पतला मल अधिक निकलता है 
👉शरीर का वर्ण भी पीला हो जाता है 
👉खट्टी और दुर्गन्ध युक्त डकारों का आना
👉हृदय, छाती और गले में जलन होती है 
👉खाने में अरुचि होती है खाना खाने का मन न करना 
👉बार बार प्यास लगती है प्यास भुजती नहीं है। 

यह सब लक्षण दिखाई दें तो समझना की आपके शरीर में पित्त दोष बढ़ गया है। 

कफज ग्रहणी होने के लक्षण 

👉कफज ग्रहणी रोगी को अन्न बहुत मुश्किल से पचता है 
👉हृल्लास( जी मिचलाना), उलटी होना या ऊभ्काई आना 
👉खाने का मन ना करना, अरुचि बने रहना 
👉मुंह में कफ का लिपटे रहना और मुंह का स्वाद बना रहता है
👉खांसी, जुखाम आदि रोगों का होना 
👉हृदय फैला हुआ सा और पेट भिजा हुआ सा भारी भारी सा लगता है 
👉दूषित और मधुर रस युक्त डकारों का आना 
👉अन्न से ग्लानि होना और मैथुन की इच्छा भी ना होना 
👉फूटा हुआ, याने के अलग अलग पदार्थों में मल का दिखाई देना 
 👉आम और कफ सहित गुरु मल का अधिक निकलना 
👉शरीर पतला ना होने पर भी कमजोरी आना 
👉और शरीर में आलस्य दिखाई देना 

यह सब लक्षण दिखाई दें तो समझना चाहिए की कफ दोष आपके शरीर में बढ़ा है जिसके कारण कफज ग्रहणी रोग आपको हुआ है। 

सन्निपातज ग्रहणी के कारण और लक्षण

ऊपर दिए हुए तीनो दोषों के अलग अलग जो कारण और लक्षण बताये गए हैं उन सभी के मिश्रण यदि दिखाई दें तो समझना चाहिए की सन्निपातिक ग्रहणी हुआ है।

घटीयन्त्राख्या ग्रहणी के लक्षण

जिस ग्रहणी के रोगी को सोते समय दोनों पसलियों में जल भरने के समय घड़े के मुख पर जो जल का शब्द(भूड़-भूड़) होता है तो यह लक्षण घटीयन्त्राख्या ग्रहणी के हैं। इसे असाध्य बताया  गया है। 

आम ग्रहणी के लक्षण | इसी को संग्रहणी कहा गया है। 

👉आंतो में गुड़गुड़ाहट का होना 
👉आलस्य, दुर्बलता अंगों में ग्लानि होना 
👉मल का कभी गाढ़ा कभी द्रव कभी सफ़ेद रंग का स्निग्ध मल निकलता है 
👉कटी भाग में पीड़ा होना और आमयुक्त अधिक मात्रा में शब्द करता हुआ मल का निकलना 
👉आंतो में मंद मंद गुड़गुड़ाहट हो इस प्रकार 10 दिन में या 15 दिन या एक महीने में निकले 
👉जो मल दिन में अधिक निकले और रात्रि में शांत हो जाये

यह जो ग्रहणी होती है वह बहुत दिन तक रहती है और बहुत कठिनाई से ठीक होती है यह आर्थराइटिस के कारण भी हो जाती है। या इस रोग के साथ आपको आर्थराइटिस भी देखने को मिल सकता है। 

आम क्या होता है?
अत्यंत भोजन करने से पीड़ित हुआ कफ और आहार के विदग्ध होने से मूर्छित हुआ कफ अपने स्थान से अलग हो करके जब अमाशय में रहता है उस अलग हुए कफ को आम कहते हैं। 
यही आम जब वात के साथ मिलता है तो आमवात याने के आर्थराइटिस बन जाता है।  याने के आम जोड़ों में जाके बैठ जाता है और दर्द करना शुरू कर देता है। 

ग्रहणी/संग्रहणी का आयुर्वेदिक इलाज | Ayurvedic Treatment of IBS in Hindi


वातज ग्रहणी का इलाज 

👉अगर आपको लक्षणों और कारणों द्वारा पता चल जाए तो की आपको वात के बढ़ने के कारण यह रोग हुआ है तो पांचो नमक(सेंधा, विड, कच, सोचार समुंद्री नमक) और पंचकोल( पीपरी, पीपरामूल, चाब, चित्रक मूल और सोंठ) आधी चमच्च को छाछ में मिला के सेवन करें। 

👉धनिया, बेल का गुदा, बला, सोंठ और शालपर्णी इन सभी को बराबर मात्रा में लेके चूर्ण बना के काढ़ा बना के सेवन करने से यह रोग नष्ट हो जाता है। 

👉शुण्ठी घृत- 50ग्राम सोंठ के चूर्ण में थोड़ा पानी मिला कर पेस्ट बना लीजिये। इस से चार घृणा गाय का घी ले लीजिये याने 200ग्राम घी और घी से चार गुना जल डाल दीजिये याने के 800ंml पानी मिला लीजिये। सबको पकने दीजिये जब केवल घृत मात्र सेष रह जाए तो उतार कर छान कर स्टोर कर लीजिये। 
इस घी के सेवन से ग्रहणी, पीलिया, लिवर के सभी रोग, खांसी, बुखार, वात  के सभी रोग सही होते हैं। 
घी या तेल सिद्ध हो गया या नहीं उसकी परीक्षा यह  की जब घी में झाग शांत हो जाये तो घी को पका हुआ मान ना चाहिए। और तेल जब पक जाता है तो छींटे मारना शुरू कर देता है, उसके अंदर पानी वाले बुलबुलों की जगह तेल वाले दिखाई देते हैं और झाग से बनते हैं।   

पित्तज ग्रहणी का इलाज

👉कच्चे बेल के गुदे का कल्क, सोंठ का चूर्ण और गुड़ सबको बराबर मात्रा में लेके छाछ के साथ सेवन करने  रोग जाता रहता है। 

👉सोंठ, अतीस, नागरमोथा, रसवत, धाय के पुष्प, कोरैया की छाल, इन्द्रजौ, बेल का गुदा, पुरइनपाढ़ी और कुटकी सबको बराबर मात्रा में लेके आधी चमच्च चूर्ण को चावल के पानी आधे गिलास पानी में एक चमच्च शहद मिला के सेवन करने पित्तज से जन्मी ग्रहणी दोष शांत होती है उसके साथ, रक्तदोष, खुनी बवासीर, हृदय रोग, गुदा की पीड़ा और प्रवाहिका रोग(पेचिश (Dysentery)) का रामबाण इलाज है। 
इस चूरन का नाम नागराध चूर्ण है।  इसको अत्रि के पुत्र कृष्ण ऋषि ने बहुत उत्तम बताया था - योग रत्नाकरः   

कफज ग्रहणी का इलाज

👉कचूर,  सोंठ, काली मिर्च, पीपरी, हरड़, सज्जीखार, जोखार, पीपरामूल, सभी को बराबर मात्रा में चूर्ण बना के आपस में मिला लें। एक चौथाई चमच्च चूर्ण लेके आधे कप बिजोरा निम्बू के रस के साथ सेवन करें। 

👉सोंठ, नागरमोथा और बायविडिंग इन तीनो की बराबर मात्रा में लेके चूर्ण बना के आधी चमच्च मात्रा को छाछ के साथ दिन में दो बार पीने से कफज ग्रहणी में निश्चय ही आराम हो जाता है। 

👉केवल सोंठ का चूर्ण आधी चमच्च चूर्ण छाछ में मिला के सेवन करने से कफज ग्रहणी शांत हो जाती है। 

सभी प्रकार के ग्रहणी/संग्रहणी रोग का इलाज | How To Cure IBS Permanently in Hindi


👉चाब, चित्रक मूल, बेल का गुदा और सोंठ सबका सामान मात्रा में चूर्ण बना के आपस में मिला लें, मिक्सचर चूर्ण की आधी चमच्च चूर्ण छाछ में मिला के सेवन करने से दुखदायी ग्रहणी नष्ट होती है। 
ग्रहणी में छाछ का प्रयोग से सबसे उत्तम माना गया है। छाछ के द्वारा ठीक हुए रोग पुनः वापिस नहीं आते। 

👉सोंठ, नागरमोथा,अतीस और गिलोय सबको बराबर मात्रा में चूर्ण बना के काढ़ा बना के सेवन करने से ग्रहणी, आम ग्रहणी, आमवात(आर्थराइटिस), मंदाग्नि, कब्ज आदि रोग नष्ट होते हैं। यह संग्रहणी का कारगर उपचार है। 

👉चित्रकमूल, भुनी हुई अजवाइन, सेंधा नमक, सोंठ और काली मिर्च सबको बराबर मात्रा में लेके चूर्ण बना के आपस में मिला के एक चमच्च की मात्रा में हल्की खट्टी छाछ के साथ सेवन करने से एक सप्ताह में ही जठाग्नि बलवान हो जाती है और ग्रहणी, अतिसार(Diarrhea, दस्त), और आंतो या पेट का दर्द नष्ट होता है।

👉बिल्वादि योग- बेल का गुदा, नागरमोथा, इन्द्रजौ, सुगन्धबाला, मोचरस इन सभी का चूर्ण बना के बराबर मात्रा में मिला के रख लें। फिर  बकरी का दूध 250ml में 1 liter पानी मिलाएं और 3 चमच्च इस चूर्ण की डाल दें।  इसको तब तक उबालिये जब तक सारा पानी उड़ ना जाये, दूध मात्र शेष रहने पर उतार कर छान कर जो मनुष्य सुबह शाम इसका सेवन करता है वह 3 दिन में ही अत्यंत बढ़ा हुआ बहुत पुराना ग्रहणी रोग, आम ग्रहणी(संग्रहणी), जिसे डॉक्टरों ने असाध्य कहके छोड़ दिया हो उनका भी यह रोग नष्ट हो जाता है। यह संग्रहणी का रामबाण इलाज है।  

यह "बिल्वादि योग" योग रत्नाकर और चिकित्सा चंद्रोदय में दिया गया है।  पुराने समय लोगो की इम्युनिटी बहुत अच्छी होती थी इसीलिए वह तीन दिन में इस रोग से बहार आजाते थे लेकिन आज के समय में रोगी को परहेज के साथ यह नुस्खा करना चाहिए और कम से काम एक महीना जरूर करना चाहिए।  इसको आगे बढ़ाया भी जा सकता है। 
 
👉लवण भास्कर चूर्ण- यह चूर्ण बाजार में बना बनाया भी आता है इसकी आधी चमच्च चूर्ण दही के पानी के साथ, छाछ के साथ या हलके गर्म जल के साथ लेने से कब्ज, अफारा, मंदाग्नि, बवासीर, संग्रहणी, लिवर के रोग. हृदय के रोग, खांसी, जुखाम, आर्थराइटिस आदि रोग नष्ट होते हैं। 
यह चूर्ण भूख को भी बढ़ाता है, ग्रामीण लोग इसे चाट मसाला की तरह सलाद के ऊपर छिड़क कर खातें हैं। 

👉दशमूल की सभी 10 औसधि और सोंठ सबको बराबर मात्रा में लेके आपस में मिला के काढ़ा बना के सुबह शाम सेवन करने से वात के 80 प्रकार के रोग, आर्थराइटिस, ग्रहणी रोग, खांसी, अरुचि, दस्त, शरीर की सूजन आदि रोग नष्ट होते हैं। यह संग्रहणी का अच्छा उपचार है। 

👉इलाइची 10 ग्राम 
दालचीनी 20 ग्राम 
तेजपत्ता 30 ग्राम
नागकेशर 40 ग्राम 
काली मिर्च 50 ग्राम
पीपरी 60 ग्राम 
सोंठ 70 ग्राम 
सबका चूर्ण बना करके आपस में मिला लें।  जितना चूर्ण हो उन सबके बराबर इसमें देशी खंड मिला लें लगभग 280 ग्राम। 

इसका सुबह शाम दोनों समय खाली पेट साधारण पानी के साथ सेवन करने से बवासीर, कब्ज, गुल्म रोग(पेट में गाँठ, tumour), पेट के सभी रोग, फैटी लिवर, IBS, शरीर में सूजन, खून की कमी और गुदा के सभी प्रकार के रोग नष्ट होते हैं।  जैसे  गुदा में कैंची की तरह पीड़ा होना या भगंदर आदि। 


संग्रहणी/ग्रहणी के घरेलु उपाय 

👉दो खजूर के फल एक कटोरी गाय के दही के साथ सुबह खाली पेट सेवन करने से संग्रहणी में लाभ होता है। 

👉सफ़ेद जीरा आधी चमच्च गाय के दही में मिला कर के सेवन करने से इस बीमारी में लाभ होता है। 

👉दो केले रोजाना गाय के दूध से बानी दही में मिला कर खाने से भी दस्त और संग्रहणी में अच्छा लाभ होता है। 

👉गाय के दूध की छाछ में आधी चमच्च काली मूसली मिला के पीने से भी इस बीमारी में  लाभ होता है। 

👉इस बीमारी में यदि कब्ज है तो सोंठ और काला नमक छाछ में मिला के सेवन कारण चाहिए या फिर भुनी हुई अजवाइन और काला नमक दोनों को आपस में मिला एक चौथाई चूर्ण लेके गर्म जल के साथ सेवन करने से मल पतला हो के निकल जाता है और अफरा आदि भी खत्म हो जाता है। 

👉सोंठ और बेल का चूर्ण बराबर मात्रा में रोजाना सुबह खाली पेट आधी चमच साधारण पानी के साथ लेके ऊपर से पुराना गुड़ का सेवन करने से दो से तीन महीने में यह रोग नष्ट हो जाता है। 

General Questons and Answers

संग्रहणी और अतिसार कैसे होते हैं?
संग्रहणी जो है वो ग्रहणी नामक आंत के दूषित होने की वजह से होता है और अतिसार शरीर की जलीय धातु क्षुब्ध(कुपित) होने की वजह से होता है। 

क्या अतिसार और संग्रहणी दोनों आंतो के रोग हैं? 
दोनों ही आंतो के रोग हैं। 

अगर दोनों ही आंतो के रोग हैं तो दोनों में अंतर क्या है?
सग्रहणी में परिपाक यंत्र  ख़राब होता है जब के अतिसार में परिपाक यंत्र की किर्या प्रणाली ख़राब होती है। 

अतिसार और संग्रहणी के दस्तो में क्या फर्क है?
अतिसार में मल पतला निकलता है जब के संग्रहणी में ऐसा कुछ भी नहीं होता , संग्रहणी में कभी गाढ़ा, कभी पतला कभी बंधा हुआ मल आता है। कभी दस्त होने लगते हैं कभी बंद हो जाते हैं। 

संग्रहणी और अतिसार के लक्षणों में क्या अंतर है?
अतिसार में पेट दर्द रहता है, मरोड़े उठते हैं, ऐंठन है,  रहता है और बेचैनी रहती है। सग्रहणी में पेट और आंतो में पीड़ा होती है परन्तु अतिसार के मुकाबले कम होती है। 

अतिसार और संग्रहणी में भूख कैसी लगती है ?
अतिसार में तो भूख बिलकुल नहीं लगती खाने का नाम सुन ना भी पसंद नहीं होता लेकिन संग्रहणी में ऐसा नहीं है रोगी को सभी 6 रस वाले पदार्थ खाने की इच्छा होती है।  

संग्रहणी और आमातिसार में भेद क्या है?
आमातिसार में अनेक प्रकार की धातुएं अपक्क(आमयुक्त mucus) मल के रूप में निकलती हैं लेकिन  केवल या  पक्का हुआ मल ही निकलता है।  और  आमातिसार  मल में विविध रंग और कच्ची दुर्गन्ध आदि नहीं होते।  

आमातिसार और प्रवाहिका(पेचिस, chronic dysentery) में क्या अंतर है ?
 आमातिसार में अनेक प्रकार की धातुएं अपक्क(आमयुक्त mucus) मल के रूप में निकलती हैं और प्रवाहिका रोग में केवल कफ या खून मिला कफ निकलता है। 

अतिसार के आराम होने पर संग्रहणी रोग कैसे हो जाता है?
अतिसार ठीक होने जाने पर भी जो मुर्ख मनुष्य मंदाग्नि वाले पदार्थों को भक्षण करता है तो अग्नि दूषित होकर ग्रहणी नामक कला को भी दूषित कर देती है जिस से की संग्रहणी रोग हो जाता है। 

ग्रहणी और संग्रहणी में क्या अंतर भेद है ?
जब ग्रहणी आम वात का संग्रह  करती है तब ग्रहणी रोग को संग्रह ग्रहणी या संग्रहणी बोला जाता है। ग्रहणी से संग्रहणी ज्यादा कष्टदायी है। 

ग्रहणी है या संग्रहणी कैसे पहचाने?
मुख्यतः संग्रहणी दिन में कुपित रहती है और रात में शांत रहती है। मल त्याग करते समय कमर में वेदना होती है।  जोड़ों के दर्द भी होते हैं। 

संग्रहणी के लिए बैद्यनाथ आयुर्वेदिक दवा या संग्रहणी की आयुर्वेदिक दवा 
परपटीकल्प, गृहणीकपाट, दशमूलारिष्ट, चतुर्मुख, सर्वांगसुंदर, अमृतवटी, जातिफलादिगुटि, कुटजावलेह, कुटजारिष्ट, चित्रकादि चूर्ण, लाही चूर्ण, बिल्वादि चूर्ण, कुमारीआसव, बिलवासव, तकरासव या तक्ररिष्ट । वैध से सलाह से लेवें। 

संग्रहणी में कुटजारिष्ट के फायदे
कुटजारिष्ट एक बहुत अच्छी आयुर्वेदिक दवा है जो के किसी भी आयुर्वेदिक स्टोर पे मिल जाती है। यह हमारे पाचन शक्ति को बढ़ाता है और मल को बांधता है। दस्त, संग्रहणी और पेचिश जैसी समस्याओं की में काफी लाभकारी है। 
संग्रहणी में या अन्य किसी रोग में कोईभी आसव या आरिष्ट कब लेना चाहिए ?

जिन लोगो को भूख नहीं लगती उनको दीपन करने के लिए भूख बढ़ाने के लिए खाना खाने से आधे एक घंटे पहले सेवन करना चाहिए। 
जिनको भूख तो लगती है लेकिन खाना सही से नहीं पचता उनको खाना खाने के आधे एक घंटे बाद सेवन करना चाहिए। 

जिनका वजन बहुत ज्यादा है उनको खाली पेट सेवन करना चाहिए। 
जिनका वजन ज्यादा है उनको खाना खाने के बाद सेवन करना चाहिए। 

संग्रहणी रोग क्या खाएं

मूंग का जूस, साठी धान के चावल, शालिधान के चावल का भात, अरहर की दाल का जूस, शहद, बकरी का (दूध, दही, घी माखन), कैथ का फल, मखन निकाले हुए गाय के दूध की दही, बेल का फल, केला का फल और फूल, सिंघाड़ा।

संग्रहणी रोग में क्या ना खाएं

इस रोग में घी युक्त पदार्थ, जिन जिन कारणों से यह रोग होता  करना चाहिए ना ही करना चाहिए, जो भोजन देर से पचते हों उनका भी सेवन नहीं करना चाहिए, non veg, पिज़्ज़ा बर्गर, मैदे से बने पदार्थ, मिर्च मसाले वाले भोजन ना करें, शुद्ध साधा भोजन करना चाहिए। रोजाना एक ही पदार्थ का भी सेवन नहीं करना चाहिए। मिठाई आदि का सेवन भी ना के बराबर करना चाहिए। हलवा खीर आदि का सेवन भी ना करें। 






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