हमारे शरीर में तीन तरह के दोष होते हैं वात, पित्त और कफ। इस पोस्ट में हम वात दोष को जानेंगे। वात याने के वायु यह वायु हमारे संपूर्ण शरीर में विचरण करती है। आयुर्वद में लिखा है हाथियों की सर्वदा कफ से रक्षा करनी चाहिए, कफ याने के मोटापा और हाथी पहले ही इतना विशाल काय है उसके शरीर में पहले से ही कफ बहुत है अतः उसकी कफ से रक्षा करनी चाहिए।
इसी प्रकार से घोड़ों की पित्त से रक्षा करनी चाहिए। कहा जाता है घोडों के पित्ताशय नहीं होता। तो जब उनके पित्त बनता है वह सीधे पेट में चला जाता है अतः उनके शरीर में ज्यादा पित्त नहीं बन ना चाहिए।
और मनुष्यों को हमेशा वात दोष से रक्षा करनी चाहिए क्योंकी वात दोष हमारे जीवन में चालीस की उम्र के बाद शुरू हो जाता है उस पहले हमारे शरीर में शक्ति अधिक होती है जो रोगों से लड़ने में सक्षम होती है। और इसके अलावा आयुर्वेद में लिखा है के यदि मनुष्य की वायु उसके शरीर में अच्छे से चलती है तो वह सौ वर्ष तक निरोगी रहकर जीता है।
जब जब यह ऊपर निचे होते हैं तब तब हमारे शरीर में रोग होते हैं। इसी प्रकार जब मनुष्य पैदा होता है तब वह अपनी एक प्रकर्ति लेकर पैदा होता है। हर अलग अलग प्रकर्ति का इंसान अलग अलग चीजें करने से उसकी प्रकर्ति दर्शा देता है।
वात दोष क्या है ?
वात दोष “वायु” और “आकाश” इन दो तत्वों से मिलकर बनाता है। वात या वायु दोष को वाट पित्त और कफ इन तीनों दोषों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना गया है।
आयुर्वेद में संस्कृत में एक श्लोक भी दिया है-
"पित्त पंगु कफ पंगु पंगवो मल धातवः।
वायुना हि यत्र नियन्ते तत्र गच्छन्ति मेघवत्।"
पित्त पंगु और कफ भी पंगु है याने शरीर में एक जगह से दूसरी जगह चल नहीं सकते जैसे बादल नहीं चल सकते उन्हें वायु चलाती है इसी प्रकार पित्त और कफ को वायु ही एक स्थान से दुसरे स्थान तक पहुँचाती है।
हमारे शरीर में गति विधियों से जुड़ी सभी प्रक्रिया वायु के कारण ही संभव है। चरक संहिता में तो वात (वायु) को ही पाचक अग्नि बढ़ाने वाला, सभी इन्द्रियों का प्रेरक बताया है और उत्साह का केंद्र माना गया है। वैसे वात याने वायु का मुख्य स्थान पेट और आंत में है।
वात दोष के प्रकार
प्राण वायु
इसी वायु के द्वारा मनुष्य स्वास लेता है। यह जीवनदायक है। जब यह वायु कुपित होती है तो हिचकी और स्वास सम्बंधित अन्य समस्या होती है।
उदान वायु
इसी वायु की वजह से मनुष्य बोलता है। यही वायु गीत गाने में, ऊँचा नीचा, तेज और धीरे बोलने में सहायक होती है। जब यह कुपित होती है तो वाणी के रोग होते हैं, जैसे की गला बैठना, गूंगापन, हकलाना, तुतलाना आदि।
समान वायु
यह वायु हमारे अमाशय और पाकाशय में रहती है और जठराग्नि के साथ मिल कर के हमारे भोजन को पचाने में सहायक होती है और उसके बाद मल मूत्र को अलग कर आगे भेज देती है। जब यह कुपित होती है तो पाचन किर्या ख़राब हो जाती है और पेट के रोग, गैस कब्ज एसिडिटी बन ना होता है।
व्यान वायु
यह वायु हमारे पूरे शरीर में रहती है इसी से ही हमारे शरीर में जहाँ जहाँ पोषक तत्व और रस जाने चाहिए वहां पहुचतें है और रक्त आदि भी इसी वायु के द्वारा घूमता है। जब यह कुपित होती है तो बहुत तरह के भयानक रोग उतपन होते हैं।
अपान वायु
यह वायु पेट के निचले हिस्से की तरफ रहती है, यह हमारे शरीर से मल मूत्र आदि को बहार निकालने में सहायक होती है, इसके अलावा महिलाओं में पीरियड्स के समय रक्त निकालने में भी और गर्भवती होने के बाद बच्चा बहार निकलने में भी यही सहायक होती है। जब यह कुपित होती है तो इनसे सम्बंधित रोग होते हैं, किडनी के रोग और अंडकोष के रोग और गुदा के रोग उतपन होते हैं।
👉मल-मूत्र या छींक आदि 13 तरह के वेगों को रोककर रखना
👉खाए हुए भोजन के पचने से पहले ही पुनः कुछ और खा लेना
👉अधिक मात्रा में भोजन करना
👉दिन में सोने से और रात को जागने से
👉रात को देर तक जागने से
👉ऊँची और तेज आवाज में बोलना
👉अपनी क्षमता से अधिक मेहनत करना
👉अपनी क्षमता से अधिक भार को उठाना, खींचना या धकेलने से
👉सफ़र के दौरान गाड़ी में तेज झटके लगने से
👉तीखी, कसेली और कडवी चीजों का अधिक सेवन
👉बहुत ज्यादा ड्राई फ्रूट्स खाने से
👉हमेशा चिंता, तनाव में या मानसिक परेशानी में रहना
👉बहुत ज्यादा सेक्स करने से
👉बहुत ज्यादा ठंडी चीजें खाने से
👉बहुत अधिक व्रत रखने से
वात दोष बढ़ जाने के लक्षण
👉अंगों में रूखापन, सूखापन और जकड़न होना
👉शरीर में सुई के चुभने जैसी पीड़ा होना
👉हड्डियों के जोड़ों में शिथिलता(ढीलापन)
👉हड्डियों और दाँतों का खिसकना और टूटना
👉अंगों में कमजोरी महसूस होना
👉अंगो का फड़कना अंगों में कंपकपी
👉अंगों का ठंडा और सुन्न होना
👉कब्ज़ होना, पॉटी का रंग काला होना और उसमे झाग दिखाई देना और पॉटी का टूट टूट कर आना बकरी के मींगन की तरह आना
👉नाख़ून, दांतों और त्वचा का सूखापन आने से फीका पड़ जाना
👉मुंह का स्वाद कडवा हो जाना
वात प्रकर्ति मनुष्य के लक्षण
👉जैसे की अगर कोई वात दोष की परवर्ती वाला इंसान होगा उसका डीलडोल सामान्य रहता है ना ज्यादा मोटा न पतला
👉जल्दी जल्दी बोलने वाला होगा
👉उसके निर्णय भी जल्दी होंगे
👉हर कार्य में जल्दबाजी रहेगी
👉एक जगह शान्ति से नहीं बैठा जायेगा
👉पैरों का हिलाना
👉नाख़ून खाना
👉शरीर में ऊचाटी मचते रहना
👉शरीर में रूखापन रहेगा
वात में कमी के लक्षण
जैसे वात दोष बढ़ जाने की वजह से कई रोग होते हैं उसी प्रकार वात की कमी से भी रोग होते हैं। वायु जब जब कुपित होती है तब तब हमारे शरीर में रोग होते हैं। वात की कमी के लक्षण इस प्रकार हैं-
👉बोलने में दिक्कत होना
👉अंगों में ढीलापन होना
👉सोचने समझने की क्षमता में कमी आना
👉याददाश्त में कमी आना
👉स्वाभाविक कार्यों में कमी आना
👉पाचन शक्ति में खराबी आना
👉जी मिचलाना और ऊबकाई आना
वात को संतुलित करने के लिए क्या खाएं
👉घी, तेल और फैट वाली चीजों का सेवन करना चाहिए, इस से शरीर का रूखापन भी खत्म होता है।
👉गेंहूं, तिल, सोंठ,अदरक, लहसुन, मेथी दाने, अजवाइन, जीरा, हींग और गुड़ से बनी चीजों का नित्य सेवन करना चाहिए।
👉सोंठ, अजवाइन जीरा आदि मिलायी हुई छाछ, मक्खन, ताजा पनीर, उबला हुआ गाय के दूध का सेवन करें।
👉घी में तले हुए सूखे मेवे खाएं, गाजरपाक, गूंद के लड्डू या फिर बादाम,कद्दू के बीज, तिल के बीज, सूरजमुखी के बीजों को पानी में भिगोकर खाएं।
👉सब्जियों में खीरा, गाजर, चुकंदर, पालक, शकरकंद आदि सब्जियों का सेवन करें।
👉फलों में आम, अमरुद, अनार, अनानास, बाबूगोशा, बेल, बेर, कटहल, कैथ, खरबूजा, खीरा, लकुच, महुआ, नारियाल, नाशपाती, पीलू, संतरा, सहतूत, सेब, तरबूज आदि इनका सेवन कर सकते हैं।
👉मूंग दाल, उड़द, कुल्थी, राजमा, सोया दूध का सेवन करें।
👉दशमूल का काढ़ा वात के सभी प्रकार के रोगों का नाशक है।
👉एरंड के बीजों का काढ़ा भी सभी प्रकार के वात दोष को खत्म करता है।
👉शरीर पे तिल, सरसों या एरडं के तेल मालिश और मर्दन करवाना चाहिए।
वात दोष बढ़ने पर क्या नहीं खाना चाहिए
👉जिन जिन कारणों से वात बढ़ता है वह सब चीजें नहीं करनी चाहिए।
👉साबुत अनाज का सेवन ना करें जैसे की बाजरा, जौ, मक्का, ब्राउन राइस आदि के सेवन ना करें।
👉सभी तरह की गोभी जैसे कि पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि से परहेज करें।
👉ठंडी तासीर की चीजें से भी परहेज करना चाहिए।
👉जो दाल ऊपर खाने के लिए बताई है उनको छोड़कर सभी प्रकार की दालों से परहेज करना चाहिए।
👉ठंडे पेय पदार्थों जैसे कि कोल्ड ड्रिंक्स और कोल्ड कॉफ़ी, ब्लैक टी, ग्रीन टी, फलों के जूस आदि ना पियें।
👉अंजीर, केला, कचरी, कमलगट्टा, साल फल, सिंघाड़ा, तेन्दु आदि इनका सेवन ना करें।