Inside this Article:
- कफ दोष का अर्थ:
- कफ दोष का कार्य:
- कफ दोष के प्रकार:
- कफ के गुण:
- कफ बढ़ने के कारण:
- कफ बढ़ जाने के लक्षण:
- कफ प्रकृति वालों के लक्षण
- कफ को संतुलित करने के उपाय:
- कफ को संतुलित करने के लिए खानपान:
- कफ प्रकृति वाले मनुष्यों को किन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए:
- कफ कम करने वाली औषधियां
- कफ की कमी के लक्षण:
- कफ की कमी का उपचार:
कफ दोष
आयुर्वेद के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति की अपनी विशिष्ट प्रकृति होती है। कई लोग अपनी प्रकृति का पता ही नहीं लगा पाते हैं, जबकि अपनी आदतों और तालमेल से आप आसानी से अपनी प्रकृति की पहचान कर सकते हैं।
उदाहरण के लिए, अगर आप किसी कार्य को प्रारंभ करने में अधिक समय लेते हैं या आपकी संचालन शांत और गहरी है तो यह यह संकेत देता है कि आप कफ प्रकृति के हैं।
इस निबंध में हम कफ प्रकृति के चिह्नों, सम्बंधित बीमारियों और उपचारों के विवरण के साथ यह सब जानकारी विस्तारित कर रहे हैं।
कफ दोष का अर्थ:
कफ दोष एक आयुर्वेदिक शास्त्र में प्रयुक्त शब्द है जिसे 'पृथ्वी' और 'जल' तत्वों के मिलन से उत्पन्न माना जाता है। इसमें 'पृथ्वी' के कारण स्थिरता और भारीपन, और 'जल' के कारण तैलीय और चिकनाई वाले गुण होते हैं। यह दोष शरीर में पेट और छाती में स्थित होता है और शरीर की मजबूती और इम्यूनिटी को बढ़ाने में मदद करता है।
कफ दोष का कार्य:
कफ दोष शरीर को पोषण देने के साथ-साथ वात और पित्त दोषों को भी नियंत्रित करता है। इसकी अधिकता के कारण वात और पित्त बढ़ सकते हैं, जिससे शरीर में विभिन्न रोग उत्पन्न हो सकते हैं। इसलिए, कफ का संतुलित स्तर बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
कफ दोष के प्रकार:
आयुर्वेद में कफ को शरीर के विभिन्न स्थानों और कार्यों के आधार पर पाँच भागों में विभाजित किया गया है –
क्लेदक
अवलम्बक
बोधक
तर्पक
श्लेषक।
आयुर्वेद में कफ दोष के कारण होने वाले लगभग 20 रोगों की चरणी दी गई है।
कफ के गुण:
कफ को भारी, ठंडा, चिकना, मीठा, स्थिर, और चिपचिपा माना जाता है। ये इसके स्वाभाविक गुण हैं। कफ धीमा और गीला भी होता है। इसका रंग सफेद होता है और स्वाद मीठा होता है। किसी भी दोष में इन गुणों की प्रवृत्ति शरीर पर विभिन्न प्रभाव डालती है और प्रकृति को पहचानने में मदद करती है।
कफ प्रकृति की विशेषताएं: कफ दोष के गुणों के आधार पर कफ प्रकृति की विशेषताएं नजर आती हैं। इस प्रकृति के लोगों की चाल धीमी होती है और भारीपन के कारण वे आलसी लग सकते हैं।
शीतलता के कारण उन्हें भूख, प्यास, और गर्मी की अधिक अनुभूति नहीं होती है, और पसीना कम निकलता है। इन लोगों की कोमलता और चिकनाई के कारण वे पित्त प्रकृति के लोगों की तुलना में गोरे और सुंदर दिख सकते हैं।
कार्यों की शुरुआत में देरी आती है, जो स्थिरता के गुण के कारण हो सकता है। कफ प्रकृति वाले लोगों का शरीर मांसल और सुडौल होता है, और उनमें वीर्य की अधिकता हो सकती है।
कफ बढ़ने के कारण:
मार्च-अप्रैल के महीने में, सुबह के समय, खाना खाने के बाद और छोटे बच्चों में कफ स्वाभाविक रूप से ही बढ़ा हुआ रहता है। इसके अलावा, खानपान, आदतों और स्वभाव की वजह से भी कफ असंतुलित हो जाता है। आइए जानते हैं कि शरीर में कफ दोष बढ़ने के मुख्य कारण क्या हैं।
• मीठे(मधुर), खट्टे(अमलीय) और चिकनाई युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन से।
• मांस-मछली का अधिक सेवन
• तिल से बनी चीजों से, गन्ना, दूध, नमक का अधिक सेवन करने से।
• फ्रिज का ठंडा पानी पीना
• आलसी स्वभाव रखने से और रोजाना व्यायाम ना करने से कफ की वृद्धि होती है।
• दूध-दही और इनकी मलाई, घी, तिल-उड़द की खिचड़ी, सिंघाड़ा, नारियल, कद्दू आदि का सेवन करने से कफ की वृद्धि होती है।
कफ बढ़ जाने के लक्षण:
शरीर में कफ दोष बढ़ जाने पर कुछ खास तरह के लक्षण नजर आने लगते हैं। आइए कुछ प्रमुख लक्षणों के बारे में जानते हैं।
• हमेशा सुस्ती रहना, ज्यादा नींद आना
• शरीर में भारीपन
• मल-मूत्र और पसीने में चिपचिपापन
• शरीर में गीलापन महसूस होना
• शरीर में लेप लगा हुआ महसूस होना
• आंखों से डीड का आना और नाक से अधिक गंदगी का स्राव होते रहना
• अंगों में ढीलापन
• सांस की तकलीफ और खांसी
• Depression
कफ प्रकृति वालों के लक्षण
👉इनकी हड्डियां, मासपेशियां आपस में मिले हुए और चिकने, गूढ़ होते हैं।
👉रंग रूप से सुन्दर, काले घने बाल होते हैं।
👉इन्हे भूख, प्यास काम लगती है फिर भी healthy होते हैं।
👉यह ज्यादा दुःख, कलेश नहीं करते।
👉इनकी आयु लम्बी होती है।
👉इनके अंदर वीर्य भी बहुत होता है इसीलिए इनके संताने भी अधिक होती है।
👉यह बहुत आलसी होते हैं इन्हे नौकर चाकर रखना पसंद होता है।
👉इनकी भुजाएं छाती आदि लम्बी चौड़ी होती है।
👉यह धर्मात्मा, कठोर वचन बोलने वाले, चुपचाप दुशमन से कई कई दिनों तक बैर रखने वाले होते हैं।
👉बाल अवस्था में यह बहुत कम रोने वाले और चपल होते हैं।
👉इनको कड़वी, कसैली, तीखी और गर्म चीजें ज्यादा अच्छी लगेंगी।
👉इनको क्रोध बहुत कम आता है। शांत स्वाभाव के होते हैं।
👉यह बुद्धिमान, मनोहर बोलने वाले, क्षमा करने वाले, लोभहीन होते हैं।
👉यह लोग स्वपन में कमल, पक्षियों को और जलीय जीव जंतुओं को देखता है।
👉इनकी याददाश्त अच्छी होती है और पढ़ने में भी अच्छे होते हैं।
कफ को संतुलित करने के उपाय:
इसको कम करने के लिए सबसे पहले उन कारणों से बचना होगा और उन्हें दूर करना होगा जिनकी वजह से हमारे शरीर में कफ बढ़ गया है। कफ को संतुलित करने के लिए आपको अपने खानपान और जीवनशैली में ज़रूरी बदलाव करने होंगे। आइए सबसे पहले खानपान से जुड़े बदलावों के बारे में बात करते हैं।
कफ को संतुलित करने के लिए खानपान:
1. बाजरा, मक्का, गेंहूं, किनोवा, ब्राउन राइस, राई, आदि अनाजों का सेवन करें।
2. सब्जियों में पालक, पत्तागोभी, ब्रोकोली, हरी सेम, शिमला मिर्च, मटर, आलू, मूली, चुकंदर, आदि का सेवन करें।
3. जैतून के तेल और सरसों के तेल का उपयोग करें।
4. छाछ और पनीर का सेवन करें।
5. तीखे और गर्म खाद्य पदार्थों का सेवन करें।
6. सभी तरह की दालों को अच्छे से पकाकर खाएं।
7. नमक का सेवन कम करें।
8. कम से कम एक साल पुराने शहद का उचित मात्रा में सेवन करें।
कफ प्रकृति वाले मनुष्यों को किन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए:
1. मैदे और इससे बनी चीजों का सेवन न करें।
2. एवोकैडो, खीरा, टमाटर, शकरकंद के सेवन से परहेज करें।
3. केला, खजूर, अंजीर, आम, तरबूज के सेवन से परहेज करें।
जीवनशैली में बदलाव:
1. पाउडर से सूखी मालिश या तेल से शरीर की मसाज करें।
2. गुनगुने पानी से नहाएं।
3. रोजाना कुछ देर धूप में टहलें।
4. रोजाना व्यायाम करें जैसे कि: दौड़ना, ऊंची व लम्बी कूद, कुश्ती, तेजी से टहलना, तैरना आदि।
5. गर्म कपड़ों का अधिक प्रयोग करें।
6. बहुत अधिक चिंता न करें।
7. देर रात तक जागें।
8. रोजाना की दिनचर्या में बदलाव लाएं।
कफ बहुत ज्यादा बढ़ जाने पर उल्टी करवाना सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है। इसके लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा तीखे और गर्म प्रभाव वाले औषधियों की मदद से उल्टी कराई जाती है। असल में हमारे शरीर में कफ आमाशय और छाती में सबसे ज्यादा होता है, उल्टी (वमन क्रिया) करवाने से इन अंगों से कफ पूरी तरह बाहर निकल जाता है।
कफ कम करने वाली औषधियां
हरड़, आंवला, बहेड़ा, त्रिफला, काली मिर्च, दालचीनी, तेजपत्ता, दशमूल, सौंफ, निम्बू, चावल का माण्ड, सोंठ, पीपरी, त्रिकटु, कालमेघ, गोखरू, लोंग, मुलेठी, इलाइची, अदरक, शहद आदि।
कफ की कमी के लक्षण:
1. शरीर में रूखापन: शरीर में त्वचा और मुख में रूखापन का अहसास हो सकता है। त्वचा की यदि रूखाई महसूस होती है, तो इसका कारण कफ की कमी हो सकती है।
2. शरीर में अंदर से जलन महसूस होना: शरीर के अंदर में जलन का अहसास हो सकता है जो कफ की कमी के कारण हो सकता है।
3. फेफड़ों, हड्डियों, हृदय और सिर में खालीपन महसूस होना: इन भागों में खालीपन का अहसास हो सकता है, जो कफ की कमी के कारण हो सकता है।
4. बहुत प्यास लगना: कफ की कमी से शरीर में पानी की कमी हो सकती है, जिससे बहुत प्यास लग सकती है।
5. कमजोरी महसूस होना और नींद की कमी: यह भी कफ की कमी के लक्षण हो सकते हैं।
कफ की कमी का उपचार:
1. पूर्ण आहार: कफ की कमी को दूर करने के लिए पूर्ण आहार लें जो कफ प्रकृति के अनुसार हो। दूध, घी, दालें, हल्दी, अदरक, और देसी गुड़ आदि उपयोगी हो सकते हैं।
2. उचित पानी की मात्रा: प्रतिदिन कुशल गरम पानी पीना कफ की कमी को दूर करने में मदद कर सकता है।
3. आदतों में बदलाव: स्वस्थ आदतें बनाए रखना और नियमित व्यायाम करना कफ की कमी को दूर करने में मदद कर सकता है।
4. आयुर्वेदिक उपचार: आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लेकर कफ की कमी के लिए उपयुक्त औषधियों का सेवन कर सकते हैं।
यदि ये लक्षण दिखाई दे रहे हैं और स्वास्थ्य स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है, तो एक विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श प्राप्त करना सुरक्षित हो सकता है।