TB के अन्य नाम और रोग की शुरुवात
अनेक कारणों और रोगों के द्वारा उत्पन होने वाला और अनेक रोग इसके साथ साथ उत्पन करने वाला यह रोग आयुर्वेद में राजयक्ष्मा कहलाता है।  इसको क्षय, सोष, और रोगराट रोग भी कहते हैं। 
यक्ष्मा की निरुक्ति- सबसे पहले यह रोग नक्षत्रों और द्विजों के राजा चन्द्रमा को हुआ था इसी कारन यह रोगो का रहा राजयक्ष्मा कहलाता है। 
यह शरीर को अंदर से क्षय कर देता है याने क्षीण कर देता है यानी खत्म करना शुरू कर देता है इसी कारण इसे क्षय रोग कहते हैं। 
यह रोग होने से रास-रक्तादि धातुओं का शोषण करता है याने उन्हें  सुखाना करना शुरू कर देता इसी कारण इसे सोष बोलै गया है। 
इसे तपेदिक भी कहा जाता है। यह कीटाणु जन्य रोग है यह माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। इसके अलावा इसके अन्य और भी कई कारण हैं। 
क्षय रोग का पूर्व रूप | रोग होने से पहले के लक्षण 
जब यह रोग होने को होता है तो यह पहले शरीर में कुछ लक्षण दिखा देता है जिस से समझ जाना चाहिए की आपको यह रोग होने वाला है वाला है -
👉स्वाश सम्बंधित रोग होना, खांसी जुखाम होना 
👉अंगो में ढीलापन
👉कफ का अधिक निकलना(नाक से पानी गिरना)
👉तालु का बार बार सुखना
👉उलटी आने के जैसे होना या उभकाई आना 
👉आलस रहना
👉कब्ज आदि होना, पेट का पाचन ठीक से काम नहीं करना 
👉अधिक नींद आना 
👉मनुष्य के नेत्र बिलकुल सफ़ेद रंग के हो जाते हैं 
👉मनुष्य को शराब, मांस खाने की और मैथुन(sex) करने की अधिक इच्छा होना
👉मुंह का स्वाद मीठा रहना 
👉मुंह के अंदर लार का अधिक बन ना
👉खाने पेनी की इच्छा का ना होना
इसके आलावा 
👉खाने पीने की शुद्ध चीजों को भी अशुद्ध समझता है 
👉उसे खाने पीने की चीजों में मक्खी, बाल या अन्य चीजें पड़ी दिखाई देती हैं। 
👉सुन्दर शरीर देख कर भी डरता है। 
👉बाल और नाख़ून तेजी से बढ़ते हैं। 
जिसे TB होने वाला होता है उसे स्वपन कुछ कुछ चीजें दिखाई देती है जैसे 
👉कव्वे को देखना
👉सुवर को, साही को देखना 
👉नीलकंठ को देखना 
👉गिद्ध, बन्दर, गिरगिट को देखना 
👉या इन में से किसी पर अपने आपको चढ़े हुए देखता है 
👉जलहीन नदी को देखना 
👉सूखे हुए पेड़ों को देखना 
👉आंधी तूफ़ान को देखना 
👉हवन में जलती हुई अग्नि को देखना 
चतुर लोग इन लक्षणों को पहचान लेते हैं और कई बार यह रोग होने से पहले ही अपने आप को रोग होने से बचा लेते हैं। 
 
क्षय रोग होने के कारण  | Causes of TB (Tuberculosis) in Hindi
शरीर में 13 तरह के वेग आते हैं उनको रोकना
जैसे पाद, मल, मूत्र, छींक, जम्हाई, नींद, भूख, प्यास, डकार, वीर्य, खांसी(या सांस), उलटी, आंसू, हसी। 
इनमे से किसी भी वेग को रोक कर रखना नहीं चाहिए, और ना ही जबरदस्ती लेके आने चाहिए। 
बहुत अधिक मैथुन से धातु का क्षय हो जाना 
कई लोग नित्य मैथुन, या हस्तमैथुन करते हैं और कुछ ज्यादा खाते पीते नहीं हैं ऐसे लोगो को भी यह रोग हो जाता है। 
अपनी ताकत से ज्यादा साहस करने से 
कई बार हम अपनी क्षमता से अधिक कार्य करते हैं, या भोजा उठाते हैं। खाते पीते कम है और मेहनत ज्यादा करते हैं ऐसे लोगो को भी यह रोग हो जाता है या किसी भी कार्य को अधिक करने से जैसे अधिक पैदल चलने से, अधिक बोलने से, अधिक मेहनत करने से अधिक भोजन करने से किसी भी चीज की अति होने से यह रोग हो जाता है। 
कम ज्यादा और बिना समय भोजन करने से 
👉आजकल मैदे का बना भोजन, मिलावटी भोजन बहुत चला हुआ है उसके करने से
👉एक बार खाना खाने के बाद फिर थोड़ी देर  बाद कुछ न कुछ खाते रहने से
👉विरुद्ध भोजन करने से और समय विरुद्ध भोजन करने से जैसे रात को दही या फल नहीं खाने चाहिए। 
👉जो लोग कई कई दिनों तक डिप्रेशन या शोक में रहते हैं। 
👉बहुत अधिक उपवास करने से
👉बहुत अधिक डर के रहने से 
👉जहाँ नहीं सोना चाहिए वहां सोने से 
👉अधिक ठंडी चीजों के सेवन करते रहने से 
👉किसी ऐसे इंसान के कांटेक्ट में आने से जिसे पहले से ही क्षय रोगो रखा है। 
 
पाप कर्मो की वजह से भी यह रोग होता है 
हारीत संहिता में लिखा है-
जो मनुष्य पूर्व जन्म में देवमूर्तियों को खंडित करता है, जीवों को दुःख देता है, गाय, राजा, ब्राह्मण, स्त्रियों और बालक की हत्या करता है, किसी के लगाए बाग या स्थान को नष्ट करता है, किसी के धन का नाश करता है, गर्भपात करवाता है, या किसी को ज़हर देता है, अपने स्वामी की स्त्री या अपने गुरु की स्त्री को पाने की इच्छा रखता है, राजा का अहित चाहने वाला, उसका धन चुराने वाला या उसकी हत्या करने वाला इन पाप कर्मो के कर्म से  कुष्ठ, क्षय, प्रमेह, मूत्रकृछ, अतिसार, भगन्दर, नासूर, लकवा, गण्डमाला,  आदि यह सब रोग होते हैं। 
 
राजयक्ष्मा रोग के लक्षण | Symptoms of TB (tuberculosis) in Hindi
त्रिरूप यक्ष्मा के लक्षण- कंधो में दर्द होना, पसलियों में दर्द होना संपूर्ण शरीर में बुखार का रहना साथ ही हाथ पाँव में जलन होना।  ये तीनो लक्षण दिखाई दें तो समझना चाहिए क्षय रोग हो गया है। 
षडरुप यक्ष्मा के लक्षण- जिसकी पाचन शक्ति कम हो जाये, ठण्ड लगे, बुखार निरंतर रहे, खून की उलटी हो, शारीरिक बल नष्ट हो जाये और शरीरमें दुर्बलता आ जाये अगर यह छ लक्षण एक साथ दिखाई दें तो समझिये की राजयक्ष्मा रोग हो चूका है। और यह षड़रूप एक प्रकार सेकंड लेवल मानिये। 
अन्य षडरुप लक्षण- भोजन में अरुचि, बुखार, खांसी, सांस की दिक्कत, मुंह से रक्त निकलना और गला बैठना। 
यश सब लक्षण एक साथ दिखाए दें यक्ष्मा हुआ समझना चाहिए 
एकादश रूप वाले यक्ष्मा के लक्षण- इसमें वात, पित्त और कफ तीनो दोषों के लक्षण दिखाई देते हैं जैसे- 
वात विकार से गला बैठ जाता है, कंधो और पसलियों में दर्द होना और उनका संकुचित हो जाना। 
 
पित्त विकार से बुखार का रहना, शरीर में जलन होना, दस्त लगना और मुख आदि से खून का निकलना। 
 
कफ विकार से सर में भारीपन रहना, भोजन में अरुचि, खांसी और गले का बैठना। 
 
यह सब 11 लक्षण एक साथ दिखाई दें तो समझिये आपको थर्ड लेवल का TB हुआ है। 
इसे थर्ड लेवल समझना चाहिए। 
 
कुछ सामान्य लक्षण 
👉तीन सप्ताह से अधिक खांसी
👉रात को अधिक पसीना निकलना
👉छाती में दर्द 
👉निरंतर बुखार का आना 
👉एक बार दोपहर को बुखार आता है फिर रात को 
👉वजन का घट जाना
👉खाने से अरुचि
 
Tuberculosis(TB) यक्ष्मा के कुछ अन्य प्रकार और उनके कारण और लक्षण 
व्यवायशोषी- यह बहुत अधिक मैथुन करने से होता है इसमें वीर्य क्षीण हो जाता है। इसके लक्षण जैसे मैथुन में अशक्ति, लिंग का खड़ा ना होना या ना रहना, शीघ्रपतन, अंडकोष में पीड़ा, वीर्य का कई कई देर बाद निकलना और कई बार वीर्य की कमी होने के कारण वहां से रक्त का निकलना। इसमें शरीर पीला पड़  जाता है और इसके बाद धातुएं कर्म से क्षीण होने लग जाती है। वीर्य के क्षीण होने पर मज्जा, मज्जा से हड्डियां, हड्डियों के बाद फैट, फैट के बाद मांस, मांस  के बाद रक्त, रक्त के बाद रस धातुएं क्षीण होने लग जाती है। 
शोकशोषी- जो मनुष्य निरंतर शोक में रहता है उन लोगो को इस प्रकार का TB होता है। इसके लक्षण की बात की जाए तो यह मनुष्य सदा चिंता में लीन रहता है, और आगे चल कर वीर्य को छोड़ कर सभी धातुएं क्षीण होना शुरू हो जाती है। 
जराशोषी- यह वृद्धा अवस्था में आकर के होता है, इसमें मनुष्य दुर्बल हो जाता है, उसका वीर्य, इन्द्रियां, बल आदि सब शुन्य हो जाता है, शरीर में कम्पन होना, अरुचि, गला ख़राब होना, कफ रहित थूकता है, शरीर भारी रहता है, आँख, नाक मुंह से जल स्त्राव होता रहता है और सूखा मल निकलता है। 
अध्वशोषी- यह बहुत अधिक पैदल चलने के कारण से होता है, इसके लक्षण जैसे उसके अंग ढीले से हो जाते हैं, पूरा शरीर रुखा सूखा सख्त हो जाता है, गला सूखता है और शरीर सुन्न रहता है। 
व्यायामशोषी- जो लोग अपनी क्षमता से ज्यादा व्यायाम करते हैं उन लोगों को यह होता है।  इसमें जो लक्षण अध्वशोषी के बताये हैं वहीँ दिखाई देते हैं। 
व्रणशोषी- इसमें चोट आदि के घाव में से बहुत अधिक रक्त के निकल जाने से होता है। इसमें रक्त के निकलने से अन्य धातुएं क्षीण होने लग जाती है। इसके अलावा कई लोग बहुत उपवास रखते हैं या भूखे पेट रहते है डाइटिंग करते हैं वह सब इसी व्रण शोष में आएंगे।  
 
Ayurevedic Treatment of Tuberculosis (TB) | क्षय/राजयक्ष्मा की चिकित्सा 
👉पांच तुलसी के पत्ते लेकर उसमे दी चुटकी काली मिर्च मिला कर कूट कर अच्छे से पेस्ट तैयार कर लें।  इस पेस्ट को दो चमच्च 
शहद के साथ सुबह शाम खाली पेट सेवन करें। यह 
क्षय, खांसी और बुखार में लाभकारी है।  
👉आधी चमच्च शकर, एक चमच्च पीसी हुई सिंधवखार और दो चमच्च 
शहद मिला कर तीनो चीजों को आपस में पेस्ट बना कर दिन में तीन बार सेवन करने से 
एक महीने में अतिभयंकर क्षय रोग का नाश होता है। 
 
👉आधी चमच्च 
गोखरू चूर्ण और आधी चमच्च 
अश्वगंधा चूर्ण दोनों को मिक्स करके दो चमच्च 
शहद में मिला लें, पेस्ट बना के दूध के साथ सेवन करने से क्षय रोग नष्ट होता है और शरीर दुर्बल नहीं होता, इस से बल वीर्य बढ़ता है। इस से क्षय रोग की खांसी भी मीटती है।  
 
👉तालिसादि चूर्ण
इलाइची 5 ग्राम
दालचीनी 5 ग्राम 
तेजपत्ता  10 ग्राम 
पीपरी 40 ग्राम   
वंशलोचन 50 ग्राम
इन सब का चूर्ण बना के मिक्स करलें। अब इसमें जितना पीपरी चूर्ण है उस से आठ गुना इसमें देशी मिश्री मिक्स कर लें। याने 320 ग्राम देशी धागे वाली मिश्री और मिला लें। 
इसकी एक चमच्च चूर्ण हलके गुनगुने पानी के साथ सुबह शाम सेवन करने से 
खांसी, जुखाम, सांस के रोग, अरुचि नष्ट होती है(याने भूख लगवाता है )। यह  जठराग्नि को बढ़ाता है, पीलिया, खून की कमी, हृदय रोग, IBS(संग्रहणी), लिवर के रोग, TB और बुखार इन सभी बिमारियों को नष्ट कर देता है। 
 
 
👉लवंगादि चूर्ण 
लोंग, शीतलचीनी, खस, लाल चन्दन, काला जीरा, इलाइची के दाने, पीपरी, अगर, नागकेसर, दालचीनी, पीपरी, 
सोंठ, खस, सुगन्धवाला, कपुर, जायफल, वंशलोचन इन सभी का चूर्ण 10-10 ग्राम चूर्ण लेलें,  जो औसधी दो बार लिखी है उनका दो बार चूर्ण लेना है, याने दो गुना चूर्ण लेना है।  अब जितना भी कूल मिला के चूर्ण बने उसका आधा भाग उसमे शक्कर भी मिला दें। 
 
इसके सेवन करने से भूख बढ़ती है, पाचन किर्या सही होती है, बल बढ़ता है, अत्यंत वीर्यवर्धक, त्रिदोषनाशक है, ,अस्थमा, खांसी, जुखाम, गले के सभी रोग, यक्ष्मा, ग्रहणी, दस्त, जिस TB में मुंह से खून निकलता हो, मूत्र के रोग और पेट की गाँठ(stomach cancer) इन सभी रोगों को शीघ्र ही नष्ट कर देता है। 
 
 
👉अश्वगंधा, पीपरी और देशी मिश्री का चूर्ण तीनो बराबर मात्रा में लेके मिक्स करके रख लें। इसकी एक चमच्च चूर्ण लेके इसमें एक चौथाई चमच्च घी मिला लें और दो चमच्च 
शहद मिला के सेवन करने से बल बढ़ता है और यक्ष्मा रोग नष्ट होता है। 
 
TB क्षय रोग में लहसुन प्रयोग
👊छाती में TB है तो सुबह खाली पेट और रात को सोते समय एक गिलास दूध में दो कली लहसुन की डाल कर इतना उबालें की दूध आधा गिलास बच जाये। लहसून क्षय रोग के लिए रामबाण है। 
👊250ml सरसों के तेल में सात से आठ कली लहसुन की डाल कर मंद मंद आंच पर पकने दें, जब लहसुन काले हो जाएँ तो उतार छान कर कांच की शीशी में रख लें। इस तेल की मालिश अगर छाती में TB है तो वहां लगाएं या शरीर के किसी भी हिस्से में हो वहां लगाएं। 
👊ताज़े लहसुन का रस निकाल लें उस रस में रूई को डूबोकर नाक के आगे लगाएं जिस से जो अंदर जाने वाली हवा होगी वह लहसुन के रस से अंदर तक फेफड़ों में पहुंच जाए। रस सुख जाने पर पुनः डुबोये। यह भी बहुत अच्छा नुस्खा है।
 
👊हड्डियों में TB है तो लहसुन की कलियाँ सात से आठ लेलें उसमे एक चौथाई चमच्च सेंधा नमक मिला के पेस्ट बना लें।  जिस स्थान पर TB है वहां इसको लगाएं।  चाहें तो ऊपर से पट्टी भी बाँध सकते हैं। यह नुस्खा पुराने समय में एक गाँव के वैध ने  बताया था, उस वैध ने एक आदमी को जिसे बोल दिया गया था की उसकी टांग काटनी पड़ेगी लेकिन जब यह नुस्खा प्रयोग किया तो मात्रा पांच सेछ महीने में ही ठीक हो गया।  
यक्ष्मा की आयुर्वेदिक दवाएं | Ayurvedic Medicine for Tuberculosis (TB)
सीतोपलादी चूर्ण
यह बाजार में मिल जाता है, इसकी आधी चमच्च चूर्ण एक चौथाई चमच्च घी और दो चमच्च 
शहद मिला के दिन में दो से तीन बार चाटने से, खांसी जुखाम, यक्ष्मा, हाथ पैरों में जलन, कब्ज, जीभ का शून्यता, पसलियों का दर्द, भूख की कमी, बुखार इन सभी रोगो के लिए लाभप्रद है। 
 
वासावलेह
यह अवलेह दिन में दो बार चाटने से रक्तपित्त, यक्ष्मा, छाती के सभी रोग, खांसी जुखाम आदि रोग शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। 
लाक्षादि तेल 
इस तेल की मालिश करने से यक्ष्मा, सभी प्रकार के बुखार आदि में कादि लाभदायक है। 
 
TB यक्ष्मा रोग का ज्योतिष उपचार 
1. इस रोगी को सवा पांच रत्ती का मोती चांदी की अंगूठी में धारण करना चाहिए। 
2. सोमवार के दिन कच्चे नारियल चार रूपये के साथ भिक्षुक को दान देने चाहिए। 
3. शिवजी की पूजा उपासना करना लाभप्रद है। 
4. प्रदोष के समय (सूर्यास्त के 45 min पहले से लेकर सूर्य अस्त के 45 min बाद तक) इस समय में पाँव भर दही में 5. दो चमच्च खांड मिला कर भिखारी को दान देना चाहिए। 
6. तीन अक्षर वाले मृत्युंजय  का जाप करना चाहिए। 
7. अगर फेफड़ो का TB  चार कैरेट का माणिक्य सोने की अंगूठी में अनामिका में पहननी चाहिए। 
8. गली के कुत्तों को दूध पिलाना चाहिए। 
9. इस रोगी को चांदी का चौकोर अपने सिरहाने निचे रख कर सोना चाहिए। 
10. गरीबों को कम्बल बाटने से केतुजन्य दोष शांत होता है। 
ॐ वागीश्वराये विद् महे हयग्रीवाय धीमहि।।
तत्रो हंसः प्रचोदयात।।    
यह विष्णु भवगान हुए हयग्रीव उनका मंत्र है। हय याने घोडा और ग्रीव याने सर।  
 
यक्ष्मा TB रोग में क्या खाएं 
👉दूध में या तो गेहूं का चूर्ण उबाल कर यह जौ का चूर्ण उबाल कर सेवन करें। यह बहुत पौष्टिक है। 
👉कच्चे केले की सब्जी खाएं, केले को पत्तों को सूखा कर उसकी रख बना कर, आधा चमच्च राख दो चमच्च शहद मिला कर चाटें। अगर कफ दोष नहीं बढ़ा हुआ तो पक्के केले का सेवन भी कर सकते हैं। 
👉आंवला या सेब का मुर्रब्बा खाना लाभदायक है। 
👉गर्मियों में गया के दूध के साथ आम का रस पियें। 
👉बकरी का दूध इस रोग में अत्यंत लाभकारी है। 
👉एक चौथाई दालचीनी और दो चमच्च  शहद चाटें। 
👉कच्चा नारियल की गिरी खाएं। 
 👉 एक चमच्च ताजे माखन में दो चमच्च शहद और एक चमच्च मिश्री मिला कर चाटें ऊपर से दूध पी लें। यह बल वर्धक है क्षय नाशक भी है। 
 
TB में क्या ना करें और क्या ना खाएं 
तेल, बेल का फल, बैंगन, राइ, करेला, सेक्स, दिन में सोना,चिंता, शौक ना करें। बहार का खाना, मैदे से बना खाना, तली हुई चीजे यह सब अपथ्य हैं। 
शरीर में वात पित्त और कफ जो दोष बढे हैं उनको और अधिक बढ़ाने वाली चीजे ना खाएं। 
अपने शरीर में लक्षणों से पहचाने की कौनसा दोष बढ़ा हुआ है। 
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