Inside this Article:
- प्राणियों के बल घटने और बढ़ने के कारण
- दोषों का संचय, कोप और उनकी शान्ति
- कौनसा दोष कौन कौन सी ऋतू में अत्यधिक होता है
- ऋतुओं में मनुष्यों के अग्नि बल और बलाबल
- सर्दियों के दिनों में क्या खाना चाहिए | हेमंत और शिशिर ऋतू में क्या खाना चाहिए
- हेमंत और शिशिर ऋतू (सर्दियों) के दिन में पथ्य कर्म
- हेमंत और शिशिर ऋतू (सर्दियों) के दिनों में क्या नहीं खाना चाहिए
- हेमंत और शिशिर ऋतू में अपथ्य कर्म
- वसंत ऋतू में क्या खाना चाहिए
- वसंत ऋतू में पथ्य कर्म
- वसंत ऋतू में क्या ना खाएं क्या ना खाएं
- वसंत ऋतू के वर्जित कर्म
- ग्रीष्म ऋतू में क्या खाना चाहिए | गर्मियों में क्या खाना चाहिए
- ग्रीषम ऋतू में पथ्य कर्म
- ग्रीष्म ऋतू में क्या नहीं खाना चाहिए
- ग्रीष्म ऋतू में अपथ्य कर्म
ऋतुचर्या
बारह महीने में छह ऋतुएँ आती है। हर एक ऋतू के दो महीने होते हैं।
- शिशिर ऋतू- माघ, फाल्गुन (15 Jan - 15 March )
- वसंत ऋतू- चैत्र, वैशाख ( 15 March - 15 May )
- ग्रीष्म ऋतू- ज्येष्ठ, आषाढ़ ( 15 May - 15 July)
- वर्षा ऋतू- श्रावण, भाद्रपद ( 15 July - 15 Sept )
- शरद ऋतू- आश्विन, कार्तिक ( 15 Sept - 15 Nov )
- हेमंत ऋतू- मार्गशीर, पौष ( 15 Nov - 15 Jan )
प्राणियों के बल घटने और बढ़ने के कारण
- चन्द्रमा और सूर्य को काल विभाजक मान कर वर्ष को दो भागों में बाटा जाता है- १) दक्षिणायन २) उत्तरायण
- इनमे से शिशिर, वसंत और ग्रीषम ऋतू उत्तरायण में आती हैं याने January से लेकर June तक
- और वर्षा, शरद और हेमंत ऋतू दक्षिणायन में आती हैं याने के July से Dec तक
👉दक्षिणायन की तीन ऋतुओं में चंद्रमाँ बलवान होता है और उत्तरायण की जो तीन ऋतुएँ हैं उनमे सूर्य बलवान होता है।
दोषों का संचय, कोप और उनकी शान्ति
- वात दोष- ग्रीष्म ऋतू में संचय होता है, फिर वर्षा ऋतू में बढ़ जाता है और शरद ऋतू में कम हो जाता है।
- पित्त दोष- वर्षा ऋतू में संचय होता है, शरद ऋतू में बढ़ जाता है और हेमंत ऋतू में कम हो जाता है।
- कफ दोष- शिशिर ऋतू में संचय होता है, वसंत ऋतू में बढ़ जाता है और ग्रीष्म ऋतू में कम हो जाता है।
👉सुश्रुत लिखते हैं की शरद ऋतू में पित्त के हुए रोग में हेमंत ऋतू में अपने आप शांत हो जाते है इसी प्रकार से कफ के रोग ग्रीष्म में और वात के रोग शरद ऋतू में शांत हो जाते हैं।
कौनसा दोष कौन कौन सी ऋतू में अत्यधिक होता है
- वात दोष- वर्षा, हेमंत और शिशिर ऋतू में अधिक प्रबल रहता है।
- पित्त दोष- शरद ऋतू में और ग्रीष्म ऋतू में अधिक रहता है।
- कफ दोष- कफ दोष केवल वसंत ऋतू में प्रबल रहता है।
👉योगरत्नाकर लिखते हैं की कई बार गलत खान पान के व्यवहार से वायु कुपित हो जाती है तो अन्य दोषो को उन ऋतू में भी भड़का सकती हैं जिनमे उन्हें शान्त होना चाहिए था।
ऋतुओं में मनुष्यों के अग्नि बल और बलाबल
👊शिशिर और हेमंत ऋतू में शरीर में सबसे अधिक बल रहता है क्युकी इस समय हमारे शरीर की जठराग्नि अधिक होती है और बारी से भारी चीज को भी आसानी से पचा देती है।
👊वसंत और शरद ऋतू में मध्यम बल रहता है। इन ऋतुओं में न अधिक गर्मी ना अधिक सर्दी रहती है इसीलिए मध्यम रहता है।
👊ग्रीष्म और वर्षा ऋतू में बल सबसे कम रहता है। ग्रीष्म ऋतू में सूर्य तेज धुप और भयानक गर्मी के कारण मनुष्य दुर्बल हो जाते हैं और जठरग्नि भी कम होती है। वर्षा ऋतू में बरसात की वजह से पृथ्वी से निकलती हुई ऊष्मा से जठरग्नि और भी कमजोर हो जाती है।
हेमंत और शिशिर ऋतू
👉इन दोनों ऋतुओं में शीतल हवा लगने से मनुष्य की गर्मी बहार निकलती है इसीलिए बलवान मनुष्य की जठराग्नि अत्यंत प्रबल हो जाती है और खाया पिया सब कुछ पचा देती है।
👉हेमंत और शिशिर ऋतू में मधुर-अम्ल-लवण रसों के पदार्थों का सेवन वायु के नाश के लिए करना चाहिए।
सर्दियों के दिनों में क्या खाना चाहिए | हेमंत और शिशिर ऋतू में क्या खाना चाहिए
✅इसीलिए इस मौसम में वजन बढ़ाने वाले भारी पदार्थों का सेवन करें, पाक आदि का सेवन करें, शराब पीने वाले शराब पियें, मॉस खाने वाले मॉस आदि का सेवन करें।
✅इस ऋतू में घी, तेल, गेहूं, उड़द, गन्ना, दूध, दही, पनीर, सोंठ, पीपर, आंवला आदि से बने पदार्थ का सेवन करना चाहिए। रात को चने भिगोकर अगले दिन सुबह सेवन करें, केला, आंवले का मुरब्बा, तिल, नारियल, खजूर का सेवन करें।
✅गर्म जल पियें, शहद खाएं, गुड़ खाएं, दूध पियें, चावलों का भात खाएं, चिकने और पुष्टिकारक, हलवा पूरी खीर आदि का सेवन करें।
✅कब्ज आदि का शिकायत रहती हो तो हरड़ के साथ गुड़ या शहद का सेवन करना लाभप्रद है।
हेमंत और शिशिर ऋतू (सर्दियों) के दिन में पथ्य कर्म
✅इस ऋतू में रातें लम्बी होती अतः केवल इसी ऋतू में सुबह का नाश्ता जल्दी करें।
✅इस ऋतू में वात के रोग ज्यादा होते हैं जैसे जोड़ों में दर्द होना, कमर दर्द होना, घुटनो में दर्द होना, पुरानी चोट का जायदा दुखना आदि यह सब होते हैं।
✅वात नाशक तेलों की मालिश करना, उभटन लगाना, सर में तेल लगाना, गर्म जल से स्नान करना, गर्म कमरे में रहना, ढकी हुई सवारी में यात्रा करना, कसरत व्यायाम आदि करना
✅ऊनि, रूई और रेशमी आदि गर्म कपड़ों को पहनना ओढ़ना और बिछाना, मैथुन करना आदि यह सब कर्म इन ऋतुओं में करें ।
हेमंत और शिशिर ऋतू (सर्दियों) के दिनों में क्या नहीं खाना चाहिए
❌इस ऋतू में आइसक्रीम, सत्तू, भूखा रहना, उपवास करना यह सब अपथ्य है।
❌दाल, बासी भोजन, कड़वे, कसेले, चरपरे, रूखे और ठंडी तासीर वाले पदार्थ आदि इनका सेवन ना करें।
हेमंत और शिशिर ऋतू में अपथ्य कर्म
❌गर्म जल से स्नान तो करें लेकिन ज्यादा गर्म जल सिर पर नहीं डालने चाहिए इस से सिर के और नेत्रों के रोग होते हैं।
❌सिर बिना ढके या बिना टोपा पहने बहार घूमना वायु को बढ़ाने वाली चीजें ना खाएं।
वसंत ऋतू
वसन्ते निचितः श्लेष्मा दिनकृभ्दाभिरितः।
👉चरक लिखते हैं वसंत ऋतू में हेमंत ऋतू में संचय हुआ कफ वसंत ऋतू में चलायमान हो जाता है और कुपित हो जाता है और अनेक रोग पैदा करता है। इस ऋतू में ना अधिक गर्मी होती है न अधिक ठंडी हवाएं चलती हैं ना गर्म हवाएं चलती हैं। इसीलिए इस ऋतू को "ऋतुराज" भी कहा गया है।
👉 वसंत ऋतू में कषाय, कटु और तिक्त(कड़वे) रसों का सेवन लाभप्रद माना गया है।
👉इस ऋतू में खांसी, सर्दी जुखाम, गले के रोग, टॉन्सिल्स, शरीर में भारीपन, आलस, गले में खराश रहना, भूख की कमी, जठराग्नि मंद हो जाती है। जिनकी पाचन शक्ति कम होती है उनको इस ऋतू में कब्ज होने की सम्भावना रहती है।
वसंत ऋतू में क्या खाना चाहिए
✅इस ऋतू में अदरख, मूली, पोइ, पेठा, पका हुआ खीरा, चौलाई, जमीकन्द, करेला, परमल, बैंगन और कड़वे साग खाना, जौ, साठी के चावल, शालिधान के चावल, कोदो, अश्वगंधा, हरड़, आंवला, त्रिफला, पीपरामूल, कषाय, कटु और तिक्त(कड़वे) रस वाली चीजों का सेवन और भांग आदि का सेवन लाभकारी है।
✅इस ऋतू में प्रातः काल जब सहर करने जाएँ तो नीम की कोमल पत्तियाँ को चबा चबा कर खाने से साल भर रक्त और त्वचा के रोग नहीं होते हैं। सुबह की धुप सेवन करें, हलके गर्म जल से स्नान करें।
वसंत ऋतू में पथ्य कर्म
✅इस ऋतू में वमन-विरेचन किर्या करना, कम भोजन करना, प्रधमन करना(नाक से ली जाने वाली औसधि प्रयोग), व्यायाम करना, औषधिय तेल या पानी से कुल्ले करना, कँवल धारण करना चाहिए।
✅उभटन लगाना, मेहनत वाले काम करना, हाथी-घोड़े, साइकिल मोटरसाइकिल की सवारी करना, चन्दन, अगर, कपूर आदि का लेप लगाना, अंजन लगाना आदि किर्या करें।
वसंत ऋतू में क्या ना खाएं क्या ना खाएं
गुरुशीतदिवास्वप्नस्निग्धाम्लमधुरांस्त्यजेत् ।
❌वाग्भट जी लिखते हैं इस ऋतू में देर से पचने वलै चीजें ना खाएं, ठंडी तासीर के और ठन्डे पदार्थ ना खाएं, घी तेल से बने पदार्थ ना खाएं, अम्लीय, मधुर और नमकीन पदार्थ ना खाएं। यह सब कफवर्धक हैं।
❌चाट, पकोड़ी, पिज़्ज़ा, तल्ली हुई चीजों का भूलकर भी इस ऋतू में सेवन न करें।
❌भैंस का दूध, बिना उबाले कोई भी दूध का सेवन, दही, खीर, हलवा, मांस, पराठे, पूरी, बहुत अधिक घी युक्त भोजन, तिल-उड़द की खिचड़ी, सिंघाड़ा, नारियल(कच्चा), कद्दू इन सबका सेवन ना करें।
वसंत ऋतू के वर्जित कर्म
❌इस ऋतू में ओस में नहीं बैठना चाहिए, ना ही सुबह औंस में भ्रमण या सहर करनी चाहिए, सिर को हमेशा ढक कर चाहिए।
❌दिन में ना सोएं, रात को जल्दी सोएं और जल्दी उठे, देर से उठने पर मल सूखता है जिस से मंदाग्नि होती है और मंदाग्नि से कब्ज और बवासीर होती है। चेहरे की कांति मीट जाती है।
ग्रीष्म ऋतू
इस ऋतू में सूरज की तेज किरणों से और लू आदि गर्म हवाओं से शरीर का बल और शरीर का जलीय तत्व का क्षय होने लगता है। वसंत ऋतू में कुपित कफ भी निकल जाता है और वात दोष का संचय होना शुरू हो जाता है पित्त कुपित रहता है। अतः वात पित्त नाशक का सेवन करना लाभप्रद है।
ग्रीष्म ऋतू में केवल मधुर रस वाले पदार्थों का सेवन लाभप्रद बताया गया है।
ग्रीष्म ऋतू में क्या खाना चाहिए | गर्मियों में क्या खाना चाहिए
भजेन्मधुरमेवान्नं लघु स्निग्धं हिमं द्रवम् ।
✅वाग्भट जी लिखते हैं की इस ऋतू में अधिक मधुर आहारों का सेवन करें, लघु याने शीघ्र पचने वाले हलके पदार्थों का सेवन करें। स्निघ्ध याने घी तेल से बने हुए भोजन का सेवन अक्रें और शीतल पेयों का सेवन करें।
✅ठंडाई, घर पर ही तैयार किया हुआ सत्तू, शिकंजी, दूध, खीर, कैरी, मौसम्बी, लौकी, गिलकी, चने की भाजी, चौलाई, परवल, केले की सब्जी, तरबूज, तरबूज के छिलके की सब्जी, आम और दूध, खरबूजा, हरी ककड़ी, हरा धनिया, जौ, गेहूं, दाख, कटहल, मख्खन, पुदीना, गुलकंद, गन्ने का ताज़ा रस, पेठा आदि।
ग्रीषम ऋतू में पथ्य कर्म
✅नहर तालाब आदि में स्नान करना, ठंडी जगह पर रहना, खुले हवादार कमरे में रहना जहाँ से ठंडी हवाएं आती हों, शरीर पर चन्दन आदि का लेप लगाना, मुल्तानी आदि का उभटन लगान, झरने आदि देखना उनके निचे नहाना, सुघंधित मालाएं पहन ना, रत्न धारण करना, रात को चन्द्रमा की चांदनी में सोना।
✅इस ऋतू में हरड़ और गुड़ बराबर मात्रा में सेवन करना चाहिए यह वात पित्त नाशक है। इस ऋतू में सुबह जल्दी उठ कर एक से डेड लीटर पानी पियें, घर से निकलने से पहले खूब सारा पानी पियें ताकि लू लगने का खतरा ना रहे, छाता या अंगोछा से अपना सर ढक कर रखें, सिर पर नारियल, चमेली, बादाम रोगन आदि का तेल लगाना चाहिए।
ग्रीष्म ऋतू में क्या नहीं खाना चाहिए
❌इन दिनों नमकीन, तीखे, खट्टे कसेले और कड़वे रसों वाले पदार्थों का सेवन ना करें, नमकीन, तेज मिर्च मसाले वाले पदार्थ, तले हुए पदार्थ, दही, अमचूर, अचार, सिरका, इमिली।
मद्यं न पेयं, पेयं वा स्वल्पं, सुबहुवारि वा ।
❌वाग्भट जी लिखते हैं की वैसे तो इस ऋतू में शराब का सेवन नहीं करना चाहिए लेकिन फिर भी अगर करना ही है तो काम मात्रा में करें अधिक पानी मिला कर करें।
ग्रीष्म ऋतू में अपथ्य कर्म
❌रात देर तक जागना, सुबह देर तक सोना, अधिक व्यायाम, अधिक पैदल चलना, अधिक मेहनत वाले काम, अधिक स्त्री सहवास, उपवास, दिन में सोना और भूख प्यास सहना वर्जित कर्म है।
वर्षा ऋतू
शरद और ग्रीष्म ऋतू में जठरग्नि मंद और मंद हुआ बल इस ऋतू में और भी कम हो जाता है। इस रोटू में वात दोष का प्रकोप अत्यंत रहता है। इस ऋतू में दूषित फल सब्जियां, दूषित जल और पृथ्वी से निकलने वाली भाप के कारण रोग उत्पन होते हैं।
वर्षा ऋतू में मधुर-अमल-लवण रसों का सेवन लाभप्रद बताया गया है।
वर्षा ऋतू में क्या खाना चाहिए
वर्षासु प्रबलो वायुस् तस्मान् मिष्टादयस् त्रयः।
रसाः सेव्या विशेषेण पवनस्योपशान्तये ।।
👆योगरत्नाकर जी लिखते हैं की इस ऋतू में वायु की प्रबलता ज्यादा है इसीलिए मधुर-अमल-लवण रसों वाले पदार्थों का सेवन वायु की शान्ति के लिए करें।
👆इस ऋतु में पृथ्वी से निकलने वाली भांप से पसीने बहुत आते हैं शरीर की आद्रता की शान्ति के लिए कटवादिक (कटु, तिक्त कषाय) इन तीन रसों वाले पदार्थों का करें जैसे त्रिफला, त्रिकटु, नीम, गिलोय आदि।
व्यक्ताम्ललवणस्नेहं संशुष्कं क्षौद्रवल्लघु
✅वाग्भट जी लिखते हैं आकाश में बादल छाए हों उस दिन प्रायप्त मात्रा में खट्टे रस वाले पदार्थ, नमकीन पदार्थ और स्निघ्ध(घी तेल युक्त) पदार्थों का सेवन करें और इनके साथ सूखा चबेना का सेवन करें। लघु पदार्थों का सेवन करें जो शीघ्र पच जाए।
✅पुराने जौ, साठी के चावल, गेहूं, काला नमक मूंग आदि दालों का जूस, पुराना शहद, थोड़ी मात्रा में शराब पुराने आसव आरिष्ट का सेवन करना लाभप्रद हैं।
✅तेल का इस्तेमाल जहाँ करना हों वहां तिलों का तेल इस्तेमाल करें यह उत्तम वात नाशक है।
✅इन दिनों पेट सम्बंधित रोग बहुत होते हैं क्यों जठराग्नि मंद होती है ऐसे में भोजन से पहले अदरक के छोटे टुकड़े करके उसपे ऊपर थोड़ा काला नमक और निम्बू छिड़क कर सेवन करलें यह अग्नि को बढ़ाता है। निम्बू इस सीजन में रामबाण है।
✅इस ऋतू में फलों में आम और जामुन का सेवन अत्यंत लाभकारी माना गया है। आम आँतों को शक्तिशाली बनता है। आम पचने में हल्का होता है, पित्त नाशक होता है जामुन दीपन, पाचन, पेट के रोगों के लिए लाभकारी है।
✅इन दिनों बारिश का संग्रह किया हुआ स्वच्छ पानी, कुवें का पानी और गरम करके ठंडा किया गया जल का सेवन करें। अन्यथा अनेक रोग पैदा हो सकते हैं।
✅इस ऋतू में हरड़ का सेवन सेंधा नमक मिला कर करना चाहिए और जब यह ऋतू ख़त्म होने को और शरद ऋतू शुरु हो तब देशी धागे वाली मिश्री के साथ इसका सेवन करना रसायन है।
वर्षा ऋतू में क्या नहीं खाना चाहिए
❌इस ऋतू में वात कुपित रहता है और पित्त का संचय होता है, अतः वात पित्तवर्धक चीजेओं का सेवन ना करें।
❌इस मौसम में हरी पत्ते दार सब्जियों का सेवन ना करें क्युकी वो इस मौसम में जल में अनेक विष्णु हो जाते हैं जिस से फल सब्जियां भी दूषित हो जाती है।
❌छाछ दही आदि का सेवन ना करें। तीखे मसालेदार भोजन का सेवन ना करें। मैदा युक्त बहार का भोजन ना करें।
❌इस ऋतू में जठरग्नि अत्यंत कम होती है अतः देर से पचने वाली चीजों का सेवन भूल कर भी ना करें। जैसे खीर, पराठे, बहुत अधिक भोजन, मांस आदि।
वर्षा ऋतू में अपथ्य कर्म
❌इस ऋतू में नंगे पेअर कीचड़ आदि में नहीं चलना चाहिए, यदि पेअर कीचड़ में भर भी जाए तो घर आते ही साफ़ कर लेने चाहिए। इस से रोग उत्पन होते हैं जैसे अलस, पाद रोग, हाथीपाँव( Elephantitis) आदि।
❌इन दिनों मच्छर बहुत अधिक हो जाते हैं और उनके काटने से रोग भी बहुत होते हैं जहाँ तक हो सके इनसे बचें, मच्छर दानी का प्रयोग करें और अपने घर के आसपास पानी इक्क्ठा ना रहने दे।
❌इस ऋतू में दिन में सोना, नदियों में स्नान करना, झरनो में स्नान करना, बारिश में भीगना हानिकारक है।
❌इस मौसम में धुप में घूमना, परिश्रम करना, मैथुन करना, शीतल जल पीना, शीतल हवा में घूमना, रुखा भोजन करना, गीले वस्त्र धारण करना यह सब अपथ्य है।
शरद ऋतू
लगभग सितम्बर महीने के आखिरी से शुरू होकर नवंबर के शुरू के दिनों तक रहती है। वर्षा ऋतू में संचय हुआ पित्त इस ऋतू में पित्त दोष अत्यंत कुपित रहता है। इस ऋतू में बहुत से रोग होते हैं और इस ऋतू को रोगों की माता भी कहा जाता है।
इस ऋतू में पित्त की शान्ति के लिए मधुर-कषाय-तिक्त रसों से युक्त पदार्थों का सेवन करें।
शरद ऋतू में क्या खाना चाहिए
तिक्तं स्वादु कषायं च क्षुधितोऽन्नं भजेल्लघु ॥50॥
शालिमुद्गसिताधात्रीपटोलमधुजाङ्गलम् ।
✅वाग्भट जी कहते हैं इस ऋतू में कड़वे, मीठे और कसेले रसों का सेवन करना चाहिए, भूख लगने पर थोड़ा खाना चाहिए। शालिधान के चावल, मूंग, मिश्री, खांड, आंवला, परमाल, मधु और हरी सब्जियों का सेवन करना लाभकारी है।
✅अनाज में गेहूं, जौ, ज्वर, शालीधान इनका सेवन करें।
✅दालों में चने, तुअर, मूंग, मसूर, मटर का सेवन करें।
✅सब्जियों में परमल, गोभी, गिल्टी, ग्वारफली, गाजर, तुरई, चौलाई, लौकी, पालक, कद्दू, आलू आदि का सेवन करें।
✅फलों में अंजीर, केले, जामुन, अनार, अंगूर, नारियल, पपीता, मसौम्बी, निम्बू, गन्ना आदि का सेवन करें।
✅सूखे मेवे में काजू, खाजोरो, अखरोट, चारोली, बादाम, सिंघाड़ा, और पिस्ता का सेवन करें।
✅मसलों में जीरा, धनिया, हल्दी, खसखस, आंवला, काली मिर्च, दालचीनी, सौंफ आदि का सेवन करें।
✅घी, दूध, मिश्री, माखन, खीर, रबड़ी आदि का सेवन करें।
शरद ऋतू में पथ्य कर्म
✅इस ऋतू में शरीर पर कपूर और चन्दन का उभटन लगाना, चाँद की चांदनी में बैठना घूमना फिरना, चंपा, चमेली, मोगरा और गुलाब आदि फूलों को धारण करना लाभप्रद है।
शरद ऋतू में क्या नहीं खाना चाहिए
❌इस ऋतू में क्षार, दही, खट्टी छाछ, तेल, चर्बी, गर्म तीक्ष्ण वस्तुएं, खारे खट्टे रस वर्जित हैं।
बाजरी, मक्का, उड़द, कुल्थी, चौला, प्याज, लहसुन, मेथी की भाजी, बैंगन, इमली, हींग, पुदीना, फालसा, अनानास, कच्चा बेलफल, तिल, मूंगफली, सरसों का सेवन वर्जित है।
❌खट्टी छाछ, भिंडी, ककड़ी का सेवन ना करें, और तेल का उपयोग ना करें केवल घी का उपयोग करें।
❌चाय, कॉफ़ी, शराब आदि सब पित्तवर्धक हैं इनका सेवन ना करें।
शरद ऋतू में वर्जित कर्म
❌दिन में सोना, धुप में घूमना, बर्फ का सेवन, अति मेहनत और परिश्रम करना, बहुत थका देने वाली कसरत करना और पूर्व दिशा से आने वाली वायु का सेवन यह सब चीजें वर्जित हैं।