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अतिसार के प्रकार
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वात अतिसार (वातातिसार) के कारण
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वात अतिसार (वातातिसार) के लक्षण
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पित्तातिसार के कारण
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पित्तातिसार के लक्षण
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रक्तातिसार
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कफ़ातिसार के कारण
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कफ़ातिसार के लक्षण
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शोकातिसार
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भयतिसार
दस्त का इलाज
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दस्त रोकने के घरेलु उपाय
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दस्त रोकने के आयुर्वेदिक नुस्खे
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दस्तों के लिए आयुर्वेदिक दवाइयां
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नाभी टलने से हुए दस्तों का इलाज
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गर्भवती के दस्तों के लिए नुस्खे
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बालकों के दस्तों के लिए घरेलु व् आयुर्वेदिक उपाय
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रक्तातिसार | खुनी दस्त कैसे ठीक करें?
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प्रवाहिका | पेचिस का देशी इलाज | पेचिस के घरेलु उपाय | Dysentery Treatment in Hindi
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दस्त लगने पर क्या खाएं और क्या करें
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दस्त लगने पर क्या ना खाएं और क्या ना करें
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- वात अतिसार (वातातिसार) के कारण
- वात अतिसार (वातातिसार) के लक्षण
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दस्त | अतिसार | Diarrhea or Loose Motion
दस्तों को आयुर्वेद में अतिसार कहा गया है। मल का पानी जैसा पतला निकलना और बार बार निकलना अतिसार कहलाता है। अंग्रेजी में इसे Diarrhea or loose motion कहते हैं। आयुर्वेद में इस घोर रोग को महा रोग की श्रेणी में डाला है क्युकी यह रोग जब बिगड़ असाध्य हो जाता है तो मनुष्य की जान भी ले लेता है। और इसका ठीक समय रहते उपचार ना किया जाये तो संग्रहणी (IBS) जैसे अन्य बहुत से रोग हो जाते हैं।
अतिसार (दस्त) होने के कारण
👉पचने में भारी, ऑयली, रुखा, गर्म तासीर वाला, कड़वे, ठंडा ऐसे भोजन के अधिक सेवन से
👉संयोग विरुद्ध, सवभाव विरुद्ध, देश विरुद्ध, अपनी प्रकर्ति विरुद्ध और समय विरुद्ध पदार्थों के सेवन से
👉पूरा दिन कुछ न कुछ खाते पीते रहने से ( जो के आजकल बहुत करते हैं। हर आधे घंटे में कुछ न कुछ खाते रहते हैं )
👉पहले के भोजन बिना पचे ऊपर से फिर भोजन करने से
👉स्नेह आदि कर्मो के अतियोग से याने के बहुत अधिक तेल या घी युक्त पदार्थ खाने से
👉किसी प्रकार का जहर खाने से
👉डरने से, शोक करने से
👉ख़राब भोजन से या दूषित जल से
👉अधिक शराब पीने से
👉जल में बहुत अधिक देर तक रहने से
👉मल मूत्र वेगों को रोक कर रखने से
👉पक्काशय में दूषित हुए कीड़ों से
👉किसी भी प्रकार से इन्फेक्शन होने से
👉बालकों के दांत निकलते समय
👉गर्भवती महिला या प्रसूता को भी यह रोग हो जाता है।
यह दस्त लगने के मुख्य मुख्य कारण होते हैं।
अतिसार की सम्प्राप्ति
ऊपर लिखे हुए कारणों से रस, पानी, रक्त, मूत्र, पसीना, मेड, कफ, पित्त प्रबृति वाली पतली धातुयें कुपित हो जाती हैं और जठरग्नि या पाचाग्नि को मंद कर देती है, और स्वयं मल में मिल जाती है।
पीछे गुदा में रहने वाली अपान वायु उसको निचे की और धकेल देती है। तब वे नदी के गुदा से निकलती है। इन सब के इस तरह से निकलने को ही आयुर्वेद में और वैद्यों ने इसे अतिसार कहा गया है।
अतिसार के पूर्वरूप
यह रोग जब किसी के होने वाला होता है तो उसे पहले ही चेता देता है की यह रोग होने वाला है। फिर भी जो मुर्ख इसे समझ नहीं पाता वह इस घोर रोग से पीड़ित होता है। जब यह रोग होने वाला होता है तो उसे निम्नलिखित लक्षण दीखते हैं :-
👉उसके हृदय, नाभि, गुदा, पेट और कुख में बहुत पीड़ा होती है।
👉अफारा याने के गैस बन ने लग जाती है और वह गुदा द्वारा पास नहीं होती।
👉मलावरोध हो जाता है। याने उसका मल नहीं निकलता।
👉पेट फूला रहता है।
👉उसको कुछ भी खाया पीया नहीं पचता क्यों जठराग्नि पहले से ही मंद है।
अतिसार के प्रकार
वात अतिसार (वातातिसार) के कारण
चरक में लिखा है-
👉वात प्रकर्ति वाला मनुष्य अगर हवा और धूप अधिक रहता है और बहुत ही शारीरिक परिश्रम भी करता है
👉बहुत रुखा सूखा भोजन करता है
👉एक ही तरह का रस का सेवन करता है
👉बहुत अधिक शराब पीता है
👉अधिक मैथुन करता है
👉अधिक मल मूत्र के वेगों को रोक कर रखता है
तो उस मनुष्य की वायु कुपित हो जाती है और वह कुपित वायु पेशाब और पसीनो को मलाशय में ले जाकर इन को मल के साथ मिला कर मल को पतला करके अतिसार पैदा कर देती है।
नोट- पेशाब और पसीना अपनी राहों से ना निकल कर मल के साथ निकलते हैं इसी कारण पसीना और मूत्र अतिसार रोगी को कम होता है।
वात अतिसार (वातातिसार) के लक्षण
👉वात से उत्पन हुई अतिसार में कुछ कुछ ललाई लिए हुए, झागों से युक्त, रुखा, आम मिला हुआ कच्चा और थोड़ा थोड़ा मल बार बार निकलता रहता है।
👉मल के उतरते समय आवाज भी होती है और दर्द भी होता है।
👉वातातिसार रोगी के पेट में दर्द रहता है।
👉मूत्र का अवरोध या कम हो जाता है।
👉आंतो में गड़गड़ की आवाज होती है।
👉ऐसा लगता है जैसे गुदा बाहर निकल गयी हो।
👉कमर और जांघो में थकान से महसूस होती है।
👉मल करते समय पाद आता है।
👉मल रुखा सा निकलता है।
👉दस्त थोड़ा थोड़ा होता है।
👉मल में झाग दिखाई देता हैं।
👉मल थोड़ा काला रंग का दिखाई देता है।
पित्तातिसार के कारण
👉बहुत अधिक खट्टे, नमकीन, कड़वे, खारे, तीक्ष्ण पदार्थो के अधिक सेवन से
👉अग्नि, धुप और गर्म हवा के ज्यादा सेवन(उनमे रहने से) करने से
👉अधिक क्रोध और ईर्ष्या करने से
इन सबसे पित्त कुपित हो जाता है और पाचक अग्नि को नष्ट कर देता है जिस प्रकार गर्म जल भी अग्नि को नष्ट कर देता है इसी प्रकार बिड़गड़ा हुआ पित्त पाचक अग्नि को नष्ट कर देता है और पक्काशय में जा कर मल को पतला करके अतिसार पैदा कर देता है।
पित्तातिसार के लक्षण
👉पीला हल्दी जैसा, नीला, काला, पित्त मिला हुआ बदबूदार मल निकलता है।
👉प्यास का अधिक लग्न का अधिक लगना।
👉शरीर में जलन सी महसूस होना।
👉पसीनो का अधिक आना।
👉बेहोशी सी रहना।
👉गुदा में पाक होना और शरीर में कहीं कहीं दर्द होना।
👉बुखार का आना।
यह सब पित्तातिसार के लक्षण होते हैं।
रक्तातिसार
पित्तातिसार में और ज्यादा पित्त को बढ़ाने वाली चीजें खायी जाएँ तो रक्तातिसार हो जाता है याने खुनी दस्त हो जाते हैं।
कफ़ातिसार के कारण
👉देर से पचने वाले भोजन के अत्यधिक सेवन से
👉अधिक ठंडी चीजों के सेवन से
👉अधिक चिकने पदार्थों के सेवन से
👉बहुत अधिक भोजन करने से
👉पूरा दिन आलस में पड़े रहने से
👉बहुत ज्यादा दिन में सोने से
कफ़ातिसार के लक्षण
👉बहुत ज्यादा थकान और निंद्रा का रहना
👉सफ़ेद, गाढ़ा, चिकना, कफयुक्त, बदबूदार, शीतल मल थोड़ा थोड़ा निकलता है और रोयें खड़े हो जाते हैं।
👉उलटी ऊभ्काई, की मिचलाना या मुंह में पानी आते रहना
👉पेट, गुदा, पेडू में भारीपन रहना
👉भोजन में अरुचि होना
शोकातिसार
भाई-बहन जैसे सगे सम्बन्धियों की जब मृत्यु हो जाये या उनके साथ कुछ अनहोनी हो जाए तो मनुष्य शोक में चला जाता है जिस से की शरीर की वायु कुपित हो जाती है।
वह वायु कुपित हो जाती है तो जठाग्नि को मंद कर देती है और शोक के कारण आँख नाक गले आदि से निकलने वाला जल और शोक से पैदा हुई गर्मी ये दोनों मिलकर कोठे में जाकर मनुष्य के खून को बिगाड़ कर उसी के साथ चलायमान हो कर गुदा की राह से निकलने लगती है।
यह वातातिसार की तरह ही होती है लेकिन इसमें रोगी को जब तक प्रसन्न ना किया जाये रोगी का उपचार नहीं हो पाता।
भयतिसार
भय की वजह से जब तीनो दोष कुपित हो जाते हैं और मल कल और अग्नि को दूषित कर देते हैं यह रोगी का भय दूर करने से ठीक हो जाता है।