शरीर पर हवाओं का असर
अधिकांश लोग नहीं जानते की हवाएं हमारे शरीर पर किस प्रकार असर डालती हैं। क्या आप जानते हैं अलग अलग दिशाओं से और पंखे AC आदि की हवाएं हमारे शरीर पर किस प्रकार असर डालती हैं। इस पोस्ट पर आज चर्चा करेंगे और यकीन मानियेगा अगर आप किसी रोग से जूझ रहे यहीं तो आप खुद यान चीज नोटिस करेंगे की अलग अलग दोषों से बहने वाली हवाएं आपके शरीर डाल रही है।
किस तरफ से हवा चल रही है आप दिशा के हिसाब से पता लगा सकते हैं, या फिर गूगल पर Windy या फिर अन्य वेबसाइट हैं जहाँ satellite की मदद से पूरी पृथ्वी में कहाँ कैसी हवा चल रही है दिखा देता है।
वैसे निर्वात स्थान याने जहाँ वायु ना लगती है ऐसे स्थान पर रहना या कमरा बनाना आयुवर्धक और आरोग्यदायक बताया है।
आंधी तूफ़ान या तेज हवाएं बहने वाली वायु के सेवन का फल
इस वायु के सेवन से शरीर में रूखापन आता है, विवर्णता और शरीर में जकड़ाहट आती है। जिनको जोड़ों के दर्द रहते हों उनको यह हवा दिक्क्त दे सकती है।
जिनके शरीर में गर्मी बनी हो या जलन हो, पित्त दोष बढ़ा हुआ हो, प्यास, पसीना और मूर्छा को दूर करने वाली है।
अतः जिन्हे वात सम्बंधित रोग हो, जोड़ों में दर्द हो उन्हें इस वायु में बहार नहीं निकलना चाहिए। पित्त सम्बंधित दोषों में तेज अच्छी सुहाती हवाओं का सेवन किया सा सकता हैं आंधी तूफ़ान का किसी अवस्था में सेवन ना करें।
मंद हवा बहने वाली वायु के सेवन के गुण फल
यह तेज हवाओं के बहने वाले के जो फल हैं उसके विपरीत है। और ग्रीष्म ऋतू के बाद और हेमंतऔर शिशिर ऋतू के बाद इन हवाओं का सेवन करना लाभप्रद है।
पूर्व से आने वाली हवाओं के सेवन का फल
पूर्वी हवा गुरु, उष्ण, स्निघ्ध होती है इन सबसे यह पित्त को दूषित कर देती है और रक्त को भी दूषित करती है, शरीर में दाह उत्पन करने वाली, वातोत्पादक(वात दोष को भी बढ़ाने वाली) होती है।
उष्ण होने के कारण कफ दोषो को नष्ट करती है और थकावट को भी दूर करती है, और जिनके शरीर में सूजन हैं इन सभी के लिए इस हवा का सेवन करना हितकर है।
यह हवा मुख के स्वाद को मधुर बनाती है, भोज्य पदार्थों में भी मधुरता लाने वाली, लवण रस उत्पन करने वाली होती है।
अभिष्यंदी, त्वचा के दोष, बवासीर, विष रोग, कृमि रोग, सन्निपात ज्वर, श्वास रोग और आमवात याने आर्थराइटिस इन सभी रोगो को बढ़ा देती है। अतः ऐसे लोगों को बिलकुल भी इन हवाओं का सेवन नहीं करना चाहिए।
दक्षिण से आने वाली हवाओं के सेवन का फल
दखिनी वायु स्वाद को बढ़ाने वाली, पित्तनाशक (पित्त के रोगो का नाशक) और रक्त विकार नाशक, लघु, शीतल वीर्य, बल बढ़ाने वाली, नेत्र के रोगो के लिए हितकर, वात को ना बढ़ाती है ना घटाती है।
पश्चिम से बहने वाली हवाओं के सेवन का फल
पछुवा हवा तीक्षण होती है, शरीर के रसों को सुखाने वाली, बल का नाश करने वाली, लधु, मेद और पित्तनाशक, कफनाशक और वातवर्धक होती है।
अक्सर आपने देखा भी होगा पछुवा जब चलती है जो लोग वृद्ध होते हैं या जिनके जोड़ों के दर्द होते हैं उन सभी को वो दुखने लग जाते हैं।
अतः जिनको वात के रोग है वो इस हवा में ना जाएँ अपने शरीर में ना लगने दें। पिट और कफ वाले इस हवा का सेवन कर सकते हैं।
उत्तर दिशा से आने वाली हवा के सेवन के फल
उत्तरहिया शीतल, स्निघ्ध और सभी दोषों को कुपित करने वाली बताई गयी है। शरीर में आद्रता उत्पन्न करने वाली स्वस्थ मनुष्यों को बल देने वाली, लघु होती है और मधुर रस को उत्पन्न करने वाली होती है।