13 Prakar Ke Vego Ko Rokne se Hone Wale Rog | 13 प्रकार के वेगों को कभी ना रोकें

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13 Prakar Ke Veg




वेगों को रोकने से होने वाले रोग

हमारे शरीर में 13 प्रकार के वेग ऐसे हैं जो समय समय पर आते हैं जैसे मल मूत्र छींक आदि। लेकिन इनको आने से रोक दें तो शरीर में बहुत तरह के रोग हो जाते हैं। और यह रोग छोटे मोटे नहीं होते। किडनी, लिवर, सर, यौन रोग, मूत्र रोग, बवासीर आदि अन्य कई तरह के रोग हमारे शरीर में हो जाते हैं। 

आदमी केवल यही सोचता रह जाता है के मैंने जीवन में ऐसा क्या गलत खाया की जिसकी वजह से मुझे यह रोग हो गया। इस ब्लॉग को अच्छे से और ध्यान से पढ़िए इस ब्लॉग में उन वेगों के बारे में चरचा करूँगा और उनकी वजह से होने वाली दिकत्तों को भी ठीक करने के बारे में बताऊंगा। 


(1) पेशाब | मूत्र के वेग को रोकने के नुकसान



पेशाब को रोकने से पेडू एयर लिंगेन्द्रियों में दर्द होता है, बाद में पेशाब रुक रुक कर आना, सिर में पीड़ा हो जाती है, शरीर सीधा नहीं हो पाता, पेट में अफरा बन जाता है और जाँघों पेडू के जोड़ों में दर्द होता है।  

चरक ऋषि लिखते हैं ऐसी दशा होने पर पसीने निकालने चाहिए, पानी में घुसकर नहाना, मालिश करना, भोजन के पहले और बाद में घी का सेवन का करना और तीन प्रकार के बस्ती कर्म करना। 

पेशाब के वेग को निरंतर रोकने से किडनी की खराबी और पथरी हो जाती है। 



(2) मल | Potty को रोकने के नुकसान



मल को रोकने से आंतो में गुड़गुड़ाहट, पेट में दर्द, गुदा में कतरने जैसी पीड़ा का होना, टट्टी साफ़ नहीं उतरती, डकारें आती है। यह लक्षण माधवचार्य ने लिखें हैं। 

चरक ऋषि लिखते हैं आधोहवा(पाद) और मल दोनों रुक जाते हैं। फिर वही गैस के कारण पक्काशय और मस्तक में पीड़ा हो जाती है। पेट में अफारा बन जाता है और नाभि मल से ल्हिस जाती है। 

मल रोकने के उपद्रवों ठीक करने के लिए स्वेदन करना चाहिए, अभयंग करना चाहिए, अवगाहन(गोते लगाकर नहाना), तीन प्रकार की बत्ती, बस्ती कर्म, वायु का अनुमोलन करने वाली औसधि जैसे सोंठ, हरड़, सेंधानमक, अजवाइन आदि चीजों का प्रायोग करना चाहिए। 

-चरक ऋषि 

लम्बे समय तक मल को रोकने से, कुष्ठ रोग, जठरग्नि मंद पड़ना, बवासीर, संग्रहणी आदि रोग हो सकते हैं। 



(3) शुक्र | वीर्य को रोकने के नुकसान



चरक लिखते हैं मैथुन करते समय निकलते हुए वीर्य को रोकने से, लिंग और अंडकोष में दर्द होता है, शरीर का टूटना, अंगड़ाई आते रहना, हृदय में पीड़ा, पेशाब का रुक रुक कर आना। 

माधवचार्य  लिखते हैं मूत्राशय(urine bladder) में सूजन, गुदा में पीड़ा, अंडकोष में पीड़ा, पेशाब का कष्ट से निकलना, वीर्य के विकार हो जाते हैं। 

ऐसे हालत होने पर मालिश, अवगाहन(गोते लगाकर नहाना), शराब पीना, मुर्गे का मांस खाना, शालिधान्य के चावल खाना, दूध पीना, निरुह बस्ती करना और मैथुन करना। 

-चरक ऋषि

ऐसा निरंतर गलती करने से अंडकोष में पथरी हो जाती है, नपुंसकता आती है, अनेक वीर्य विकार हो जाते हैं, hydrocele और varicocele अंडकोष की बीमारिया हो सकती हैं। 



(4) अधोवायु(पाद) | पाद को रोकने के नुकसान

गुदा से निकलने वाली वायु को शर्म और लज्जावश रोकने से मल मूत्र रुक जाते हैं, पेट फूल जाता है और अनायास थकान सी महसूस होती है, वात के रोग हो जाते हैं और गैस बनने के कारण पेट में दर्द भी हो जाता है। 

ऐसा होने पर स्नेह, स्वेद, और बस्ती कर्म किर्या करनी चाहिए, पान खाना, और वायु का अनुलोमन करने वाली औसधी का सेवन जैसे त्रिफला, त्रिकटु, सोंठ, हरड़, अजवाइन आदि।  



(5) वमन | उल्टी आने को रोकने के नुकसान



वमन याने के उलटी आना, इसे रोकने से  शरीर में खुजली, चकते पद जाते हैं, भूख नहीं लगती, मुंह पर झाइयां आजाती हैं, सूजन, पीलिया, सुखी ओकारी और विसर्प रोग हो जाते हैं। चरक ने तो यह भी लिखा है की भयंकर कुष्ठ रोग हो जाते हैं। 

इसके उपद्रव दूर करने के लिए भोजन के बाद वमन करवानी चाहिए, उसके बाद आयुर्वेदिक धूम्रपान करना चाहिए, फिर लंघन कर्म याने कुछ खाना पीना नहीं चाहिए या बहुत ही हल्का फुल्का भोजान करें। रूखे पदार्थों का सेवन करें, जुलाब लगवायें और कसरत आदि करें। 



(6) छींक | छींक के वेग को रोकने के नुकसान



छींक को रोकने से गर्दन के पीछे मन्या नामक नस जकड जाती है जिसे Torticollis  मन्या स्तम्भ कहते हैं। सर में दर्द होना, मुंह का लकवा होना, इन्द्रियों का दुर्बल हो जाना और अर्धांग वात हो जाना। 

चरक ऋषि लिखते हैं आधा शीशी याने माइग्रेन हो जाना, लकवा होना, सर में दर्द, गर्दन का जकड़ना और इन्द्रियों में दुर्बलता आना। 

ये उपद्रव हों तो ऊपरी भाग में मालिश करें या करवाएं, स्वेदन कर्म करें, धूम्रपान करें, नस्य कर्म करें,  वातनाशक किर्या करनी चाहिए और भोजन के पहले और बाद में घी पीना चाहिए।  



(7) डकार | डकार को रोकने के नुकसान



डकार के वेग को रोकने से वायु के बहुत सारे रोग हो जाते हैं, कंठ और मुंह का भारी भारी सा मालूम होना, ऐसा लगता है जैसे नोचने का सा दर्द हो रहा हो, किसी के समझ ही ना आए ऐसी बातें करना

चरक में लिखा है- हिचकी होना, खांसी, अरुचि, कम्प और हृदय का भारी सा होना- ये रोग हो जाते हैं ।


यह उपद्रव हो जाएँ हो उनकी शान्ति के लिए- हिचकी हो जाये तो उसकी शान्ति के लिए जो उपाय बताएं है वह करना चाहिए जैसे पानी में सेंधा नमक मिला कर नस्य देना चाहिए । रोगी को स्वेदन क्रिया करनी चाहिए जिस से की छेदों में चिपका हुआ कफ निकल जाए। इसके बाद चिकना घी युक्त भोजन देना चाहिए। अगर बहुत ज्यादा उपद्रव हों तो पीपल, सेंधान्म्क और शहद या किसी अन्य औषधीसे वमनकरवा देना चाहिए।



(8) जम्भाई | उबासी को रोकने के नुकसान



उबासी के वेग को रोकने से सर्वाइकल की दिक्कर और गले में जकदन हो जाती है, मस्तक में गैस चढ़ जाती है जिसेक कारण दर्द होता है, आंख, नाक, कान मुख के रोग और कानों के रोग हो जाते हैं।

इनके उपद्रव को शांत करने के लिए वातनाशक क्रिया करनी चाहिए।



(9) भूख | भूख के वेग को रोकने के नुकसान 



भूख के वेग को रोकने से शारीर टूटना, तन्द्रा, अरुचि, थकान और नजरें कम हो जाती हैं। 

चरक में लिखा है-  भूख लाग्ने पर अन्न नहीं या कुछ नहीं  खाने से देह में दुर्बलता आती है, कृशता(शारीर पतला होना), विवर्णता, अंगो का टूटना, भ्रम(सर घूमना) आदि होता है। 

इसके लिए चिकने भोजन, हलके जल्दी पचने वाले भोजन और थोड़े गर्म तासीर के भोजन देना चाहिए । 



(10) प्यास | प्यास के वेग को रोकने के नुकसान



प्यास के वेग को रोकने से कंठ और मुख बार बार सूखते रहते हैं। कानो के रोग जैसे कम सुनाई देना और हृदय में पीड़ा होने लगती है। 
चरक ऋषि ने लिखा है- प्यास लगी हो और पानी नहीं पीने से थकावट और श्वास रोग भी होते हैं।
इस से हुए रोगों के लिए शीतल और तर्पण करने वाली किर्या करनी चाहिए जैसे की- 

👉शहद का गण्डूष धारण करें याने के एक चमच्च शहद  मुंह में लेकर कई देर तक अंदर रखें फिर उसके बाद उसे धीरे धीरे पी जाएँ या बाहर थूक दें। 
👉अनार, बेर, लोध और बिजोरा निम्बू इन सबको पीसकर माथे पर लेप करें। 
👉चावलों के पानी में शहद मिला कर पियें। 
👉गीले कपडे को शरीर पर लपेटें। 



(11)आंसुओं | आंसुओं के वेग को रोकने के नुकसान



आँसू के वेग को रोकने से सर में भारीपन हो जाता है, नेत्रों के रोग और पीनस(जुखाम) यह सब रोग खूब जोर से होते हैं। 
चरक ऋषि ने लिखा है- किसी भी कारण रोना अगर आ रहा हो तो और आंसुवो को रोकने से जुखाम, आखों के रोग, हृदय के रोग, अरुचि और भ्रम(सर घूमना) रोग होते हैं। 
इनकी शान्ति के लिए भरपूर नींद सोना, कम मात्रा में शराब पीना, चित्त को प्रसन्न करने वाली मीठे बातें करें मित्रों के साथ बैठें, मधुर संगीत सुनना। 


(12) नींद | नींद के वेग को रोकने के नुकसान



नींद आ रही हो और ना सोएँ तो नींद के वेग को रोकने से बार बार जम्भाई आना, अंगो का टूटना, नेत्रों और मस्तक में जड़ता हो जाना, शरीर में तन्द्रा का रहना। 
ऐसे में भरपूर नींद लेकर नींद पूरी करनी चाहिए और किसी दुसरे व्यक्ति की मदद से अपने हथेलियों और पैर के तलवों पर मालिश करवाएं। 


(13) साँस/ खांसी | खांसी के वेग को रोकने के नुकसान 




थके हुए साँसों के वेग को रोकने से हृदय के रोग, मोह और अफारा बन जाता है। 
इस दशा में रोगी को आराम करना चाहिए, और वातनाशक किर्या करनी चाहिए। 
सांस रोकने का यह मतलब नहीं की आप प्राणायाम ना करें, यहाँ साँस के वेग को रोकने का मतलब हैं जब आप थक जाते हैं या भागा दौड़ी करके आते हैं ऐसे में कई लोग साँस रोकते हैं यह सोच कर इस से जल्दी साँस उत्तर जाते हैं। 

वृद्ध वागभट जी ने खांसी को भी इसमे जोड़ा है-

कासस्य रोधात् तद्-वृद्धिः श्वासा-रुचि-हृद्-आमयाः ॥ १३ ॥ शोषो हिध्मा च कार्यो ऽत्र कास-हा सु-तरां विधिः ।
१. सूत्रस्थानम् -रोगानुत्पादनीय:  ४ - अष्टांग हृदयम

याने जो खांसी को रोकने की कोशिश करता है उसे खांसी का ही रोग, सांस संबन्धित रोग जैसे अस्थमा, TB, हृदया के रोग, अरुचि, और हिचकी रोग हो जाता है।
इसकी शांति के लिए खांसी नाशक नुस्खे अपनाने चाहिए।

यह सभी तरह के 13 वेग यहाँ लिख दिए हैं इन सबको रोकेने से या फिर बलपूर्वक लाने से वात दोष अत्यंत कुपित होकर भयानक रोग उत्पन कर देता है। अतः भूलकर भी इन्हे कभी रोकना नहीं चाहिए। 


चरक ऋषि के उपदेश- कौन से वेगों को रोकना चाहिए?

👉यदि इस लोक और परलोक में मंगल की कामना करते हो अनुचित साहस के वेग को, मन के वेग को, वाणी के वेग को, देह के वेग को, कर्म के वेग को रोकना चाहिए या उन पर नियंत्रण होना चाहिए। 

👉कर्म के वेग को, लोभ, शोक, भय, क्रोध, अनुराग के वेग को परायी सम्पति देखकर ईर्ष्या करने के वेग को रोकना चाहिए। 

👉कठोर बोलने के वेग को, अत्यंत ग्लानि सूचक बोलने के वेग को, मिथ्या बातें बोलने के वेग को, अकालयुक्त वाक्य बोलने के वेग को रोकना चाहिए। 

👉दुसरे को कष्ट देने के वेग को, स्त्री संग के वेग को, चोरी के वेग को और हिंसा परवर्ती के वेग को रोकना चाहिए। 

👉किसी भी चीज की अति भी नहीं करनी चाहिए इस से भी वात दोष कुपित होता है जैसे की अति भोजन करने से, अति भूखा रहने से, बहुत बोलने से, बहुत कसरत करने से, बहुत सम्भोग करने से, अति निंद्रा करने से या बहुत ज्यादा जागते रहने से, बहुत देर तक एक जगह गलत आसान पर बैठे रहने से, बहुत डरे तक किसी चोज को निहारते रहने से जैसे टीवी मोबाइल आदि, बहुत अधिक पानी पीने से बहुत अधिक कम पानी पीने से, क्षमता से अधिक भार ढोने, उठाने, खींचने, धकाने से, बिना वेग के जोर लगा के मल त्यागने से, बहुत अधिक नाचने से, बहुत अधिक पैदल चलने से, बहुत अधिक एक्सरसाइज करने से आदि वात दोष कुपित होता है।    

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