जटामांसी या जटिला
जटा, जटामासी, नटिला नाम से विख्यात यह सुगन्धित द्रव्य आयुर्वेद और यूनानी द्रव्यगुण शास्त्र का एक वरद् द्रव्य है । चरक, सुश्रुत और वाग्भट द्वारा रचित ग्रन्थो मे मासी और जटिला दोनो शब्दो का प्रयोग किया गया है । जटामासी भी तीनो मे मिलता है । जटा शब्द जटामासी के पर्याय के रूप मे चरक ने नहीं लिखा । भूतकेशी का उल्लेख सुश्रुतसंहिता उत्तरतन्त्र सूत्रस्थान अध्याय ६ मे एक बार किया गया है । चरकसहिता मे यह शब्द नही है । अष्टागहृदय में इसका दो बार उल्लेख किया गया है।
जतमांसी के अन्य नाम
संस्कृत - जटामासी (जटायुक्त मामल कन्द वाली), भूतजटा, तपस्विनी (जटायुक्त होने के कारण ), सुलोमशा ( अधिक रोमो वाली), नलदा ( नलगन्ध रादि सुगन्वित)
हिन्दी - जटामासी, वालछड, वालछर, कनुचर।
गुजराती - जटामासी, वालछडा।
मराठी - जटामासी।
तामिल - जटामासी।
तेलगु - जटामासी, जटामासमु।
कन्नड़ - जटामासी, बहुतगध।
मलयालम - जटामासी।
कश्मिरी - भूतिजट्ट, कुकिलपोट।
नेपाली - हमवा, नसवा, जटामासी।
भूटानी - पम्पे, जटामासी।
अग्रेजी - स्पाइकनार्ट (Spikenard )
लॅटिन - नार्डोस्टैफिस जटामासी (Nordostachys Jatamansı)
प्राप्ति स्थान - यह ठंडे जलवायु मे उत्पन्न होती है - "शीतस्थलेषु जायते ।” सुतरा यह हिमालय की प्रसिद्ध औषधि है। उत्तराखण्ड (हिमालय) मे यह ३००० मीटर की ऊचाई से लेकर ३८०० मीटर की ऊचाई तक पहाटी ढलानो पर प्राय ताली, किनको - लियारवाल पवालीकाटा, केदारनाथ, तुगनाथ आदि स्थानो पर सुलभ है।
जटामांसी के आयुर्वेदिक गुणधर्म
रस- तिक्त, कषाय, मधुर
गुण - लघु, स्निग्ध तीक्ष्ण।
वीर्य - शीत। विपाक - कटु | प्रभाव - भूतघ्न ( मानमदोपहर ), मेध्य।
दोषकर्म - त्रिदोषनाशक, विशेषत पित्तकफशामक यह स्निग्ध होने से वात का, तिक्त, कषाय, मधुर होने से पित्त का एवं कफ का शमन करती है।
जटामासी के फायदे
त्वचा के रोगों में जटमांसी के फायदे
स्वेदाधिक्य - जटामांसी का सूक्ष्म चूर्ण कर उसका अवधूलन(शरीर पर लगाने से) करने से स्वेद कम आने लगता है।
विस्फोट - इसके लेप से विस्फोट मे भी दाह और धूल का नाश होता है।
व्रण/फोडे - फुन्सियो पर इसके चूर्ण का लेप करने से दाह दूर होकर वे ठीक होने लगते हैं।
रक्तविकार-
(क) जटामासी के शीत- कषाय मे मधु मिलाकर सेवन करें।
(ख) जटामांसी २ भाग और मजीठ १ भाग लेकर क्वाथ बनाकर सेवन करें।
་(ग) जटामासी, खदिर, चोपचीनी, अनन्तमूल और बकायन की छाल का अर्क बनाकर सेवन करें।
सभी प्रकार के चर्म रोगो में
जटामासी, लाल चन्दन, अमलतास, करज की छाल, नीम छाल, सरसो, मुलहठी, कुडाछाल और दारुहल्दी समभाग लेकर क्वाथ करें। इस क्वाथ के पान से कण्डू, पामा आदि चर्मरोगो का नाश होता है । + भा० भ० र० ।
त्वग्दोष- त्वचा पर चन्दन की भांति लेप करें। इससे त्वचा की रूक्षता, व्यंग(दाग धब्बे), दाह(जलन) आदि नष्ट, होकर त्वचा कोमल होती है।
व्रणशोथ- जटामासी के चूर्ण का लेप करने शोथ(सूजन) और वेदना(दर्द) का शमन होता है।
हृदयरोग और उच्च रक्तचाप | Heart Disease and High Bp में जटामांसी प्रयोग
(क) जटामासी, अर्जुन छाल, बला, रोहितक की छाल का क्वाथ हृदयरोगो मे विशेषतः लाभप्रद है।
(ख) जटामासी फाण्ट का ४-५ घण्टो के अन्तर मे पान कराना भी लाभप्रद है।
(ग) हृदय के स्थान पर जटामासी का लेप करने मे हृदुद्रव (दिल का अधिक धडकना ) मिटता है।
उच्च रक्तदाब | Jatamansi for HIGH BP
(क) जटामासी का फाण्ट बनाकर पीवें।
(ख) जटामामी १० ग्राम, दालचीनी २ ग्राम को मधु से २-३ बार चाटें ।
(ग) जटामासी, अश्वगन्धा और सर्पगन्धा के चूर्ण को नामलकी स्वरम से सेवन करना भी हितकारी है।
(घ) जटामासी, ब्राह्मी और कुलिंजन के चूर्ण को मधु के साथ सेवन करें।
(ङ) जटामासी, वचा, कूठ और शुद्ध कुचिला को वीत जलानुपान से सेवन करें ।
बवासीर और पाचन शक्ति ठीक करने के लिए जटामांसी
अग्निमांद्य(Indigestion) - जटामानी, कालाजीरा और मोठ के चूर्ण को सेवन करें।
आध्मान (अफारा) - उसके चूर्ण को गरम जल से सेवन करे।
अर्श(बवासीर)-
(क) जटामासी और हरिद्रा को मिला पीसकर अशकुरो(मस्सों) पर लेप करने से वेदना का शमन होकर अशांकुर मुरझाने लगते हैं।
(ख) जटामासी, नीलोफर, सुगन्धवाला, लालचन्दन, नागकेशर और शर्करा के चूर्ण को सेवन करें।
कफ के रोगों लिए जटामांसी प्रयोग
कास श्वास(Cough and Asthma) - जटामांसी, लौंग, बड़ी इलाइची, पिप्पली बोर मिश्री के चूर्ण को मधु के साथ सेवन करें।
यक्ष्मा(Tuberculosis) - जटामासी, चन्दन, खस, पर्पट, मोथा, कमलपुष्प और सुगन्धवाला का क्वाथ बनाकर पान करें।
प्रतिश्याय(जुखाम) - विशेषत जीणं प्रतिश्याय मे नस्य हेतु उस्तख एव इसके चूर्ण को उपयोग मे खाना चाहिये।
पित्त रोगों में जटामांसी प्रयोग
नासास्त्राववाधिक्य - जिम व्यक्ति की किंवा बच्चे की नासिका से स्राव होता रहता हो उसे जटामांसी चूर्ण का नस्य लेना चाहिये।
पित्तज्वर – जटामामी चूर्ण का कल्क बना- कर शरीर पर लेप करने से पित्तज्वरजन्य दाह का शमन होता है।
तृष्णा (बार बार प्यास लगना) - जटामासी, मुस्तक, पर्पट, सौंफ, खस और चन्दन का क्वाथ सेवन करें। यह ज्वर के दाह को भी दूर करता है।
वात रोगों को कम करने के लिए जटामांसी
उदरशूल(पेटदर्द) - जटामासी, कालानमक, सोंठ और हरीतकी चूर्ण सेवन करें।
बस्ती शोथ- जटामांसी, हाऊबेर, गोखरू ओर शीतलचीनी चूर्ण को गोमूत्र में सेवन करें।
वताज्जशूल- जटामांसी ४ भाग कबाबचीनी, सौंफ, सोंठ १ -१ मिश्री २ भाग लेकर सबका चूर्ण करें । मात्रा २ से ४ ग्राम तक मेदरोग, वातशूल ( भयंकर शूल) उदरशूल तथा आक्षेपक व्याधियों मे प्रयोजित है।
वात विकार - जटामासी ३ ग्राम तथा दशमूल का काढ़ा बना कर सेवन करने से सभी प्रकार के वात रोग दूर होते हैं।
दन्तरोग - जटामासी का सूक्ष्म चूर्ण बनाकर इसका कुछ दिनो तक मजन करने से मसूढो का फूलना, मसूढो से पूय आना, दातो मे दर्द होना और सुख की दुर्गन्ध आदि नष्ट होकर दात स्वच्छ होते हैं।
शिरःशूल(सिरदर्द) - लाट(माथे) पर इसका लेप करने से सरदर्द मिटता है।
नपुंसकता और गुप्त रोगों के लिए जटामांसी प्रयोग
(क) जटामासी, अकरकरा और सीता चूर्ण का सेवन करना लाभप्रद है।
(ख) जटामासी, जायफल, लोंग, सोंठ और सीता चूर्ण को दूध के साथ सेवन करें।
शिश्नस्थूलीकरण हेतु - लिंग को मोटा करने के लिए जटामासी प्रयोग
(क) जटामासी, कूठ, असगन्ध, वाराहीकन्द को पानी मे पीसकर लेप करें।
(ख) जटामासी, कूठ, वच और सरसो को जल मे पीसकर लेप करें।
बल और वीर्य बढ़ाने के लिए
जटामासी १० भाग, दालचीनी, इलायची ८-८ भाग, कूठ या पुष्करमूल, लोंग, कुलजन श्वेतमिर्च, नागरमोथा, सोंठ ६-६ भाग, रोगन- बलसा ५ भाग, केशर ४ भाग और चिरायता १० भाग इन सबका अस्टमांश क्वाथ सिद्ध करें । इसकी मात्रा २५-५० मि० लि० तक सेवन करने से अशक्ति एवं शुक्र की कमजोरी दूर होती है। -धन्व ० वनौ वि० ।
महिलाओं के रोगों के लिए जटामांसी
कष्टार्तव(पेनफुल पीरियड्स) - जटामासी और पाषाणभेद के चूर्ण को उष्ण जल से सेवन करें।
मक्कलशूल(बच्चा होने के बाद महिलाओं को होने वाला दर्द) - जटामासी, भार्गी और पिप्पली-मूल का काढ़ा बनाकर सेवन करे।
श्वेतप्रदर(वाइट डिस्चार्ज) - जटामासी चूर्ण को अशोक और बला के क्वाथ से सेवन करे।
जटामांसी तेल कैसे बनाएं और उसके फायदे
जटामांसी २५० ग्राम को मोटे चूर्ण को एक लीटर पानी में डाल कर रात भर भिगो दें, अगली सुबह मंद आंच पर पकाएं। २५० ग्राम पानी शेष रहने पर छान लें और इसके अन्दर २५० ग्राम तिल का तेल मिला लें। और ६० ग्राम जटामांसी के चूर्ण का कल्क भी मिला दें और मंद मंद आंच पर पकाएं जब तेल मात्र सेष रह जाये तो उतार छान लें।
इस तेल को दिने में दो बार लगाने से जुएँ नष्ट हो जाती है, बाल झाड़ना शीघ्रता से नष्ट हो जाता है। इस तेल के उपयोग से बाल बढ़ते हैं। बाल मुलायम और चमकीले रहते हैं। शारीर पर लगाने से झुरियां, काले दाग दूर होकर रंग निखरता है। सिघ्म कुष्ठ रोग भी दूर होता है।
बालों के लिए जटामांसी
जटामांसी, खरेटी, बबूल, कमल, आंवला, कूठ इन सभी के चूर्णों को बराबर मात्र में लेकर जल में पीसकर बालों में नहाने से पहले लगायें फिर धो लेने से बाल गिरना बंद हो जाता है, बाल लम्बे घुंगराले और काले हो जाते हैं।
मष्तिष्क रोगों में जटमांसी चूर्ण के फायदे
अपस्मार(मिर्गी) में जटामांसी के फायदे | Jatamansi for Epilepsy
(क) जटामांसी के चूर्ण का नस्य लेने से लाभ होता है।
(ख) जटामांसी का चूर्ण १ ग्राम १२० मि० ग्राम कपूर १८० मि० ग्राम, दालचीनी ३०० मिलीग्राम इन सब चीजो का चूर्ण बनाकर भोजन से पहले लेने से अपस्मार और गुल्मवायु मे बहुत लाभ पहुचाता है । यह इसकी एक मात्रा है । -वनी० चन्द्रो०
योषापस्मार(Hysteria) में जटामासी प्रयोग | Jatamansi for Hysteria
(क) जटामासी चूर्ण को मधु के साथ सेवन करे।
(ख) जटामासी, तुलसीपत्र और शंखपुष्पी के क्वाथ का सेवन हितावह है।
(ग) जटामासी, और अश्वगन्धा के चूर्ण को सेवन करना भी हितकारी है।
(घ) जटामासी २ ग्राम वचा चूर्ण १ ग्राम के चूर्ण को मधु के साथ सेवन करना लाभप्रद है।
(ड) जटामासी वचा और ब्राह्मी के चूर्ण को गोघृत के साथ सेवन करे।
(च) जटामासी, और पिप्पलीमूल का क्वथ बनाकर सेवन करें।
(छ) जटामासी, वचा और काले नमक का चूर्णं बनाकर सेवन करे।
(ज) जटामासी, अश्वत्थमूलत्वक्, अश्वगन्धा और तुलसीपत्र (नवीन) के क्वाथ मे मधु मिलाकर कुछ दिन (न्यूनतम ग्यारह दिन ) सेवन करे।
हिस्टीरिया का इलाज जटामांसी से
जटामांसी २४ ग्राम, गाजा, कपूर, वच १२-१२ ग्राम, खुरासानी अजवाइन ४८ ग्राम, केशर ३ ग्राम। इन सबको मिलाकर कपड़छान चूर्ण कर ३ घंटे तक अदरक के रस में खरल कर वटी बना लें।
मात्रा- दो दो गोली साधारण पानी से या फिर जटामांसी की फ़ॉन्ट से।
उपयोग- इस वटी के उपयोग से हिस्टीरिया रोग २१ दिन में ठीक हो जाता है। यह वटी मष्तिष्क को शांत बनाएं रखती है। निक्कमे विचारों को दूर करती है बल बढ़ाती है और पाचन सही करती है।
उन्माद(पागलपन) में जटामांसी प्रयोग
(क) जटामासी, शतावरी चूर्णं को. ब्राह्मी स्वरस के साथ सेवन करें।
(ख) जटामासी, वचा और ब्राह्मी के चूर्ण को मधु, के साथ सेवन करे ।
अनिद्रा के लिए जटामांसी | how to use jatamansi for sleep
(क) जटामामी, खुरामानी अजवाइन और भृङ्गराज चूर्ण को भैंस के दूध के साथ सेवन करें।
(ख) जटामासी, ब्राह्मी, शखपुष्पी के चूर्ण को दूध के साथ सेवन करना भी लाभप्रद है।
(ग) जटामांसी, द्राक्षा और रुद्राक्ष के १२ ग्राम चूर्ण को मिट्टी के पात्र मे ५० मि० लि०, खौलते हुये पानी मे डालकर ढक कर रख दें। कुछ ठण्डा हो जाने पर छान कर पीने से रक्तचाप का नियम न होता है और अच्छी नींद आती है। —षोडशाङ्गहृदय।
मूर्च्छा(बेहोशी) - मूच्छित रोगी के नेत्रो पर जटामासी के चूर्ण का पतला लेप करने से रोगी को होश आ जाता है।
आक्षेप (दौरे पड़ना) - जटामासी और बला का क्वाथ हितकारी है।
सभी प्रकार के दौरे आने वाले रोगों में
(क) मांस्यादि क्वाथ -
जटामासी १२ ग्राम, असगन्ध ३, ग्राम और खुरानानी अजवायन के बीज १ ग्राम इसको जौकुट कर १२० ग्राम जेल में पका. ४८ ग्राम जल वाकी रहने पर कपडे से छानकर पिलायें।
उपयोग - इस क्वाथ का हिस्टीरिया, आक्षेप और बालको का आक्षेपक याने के सभी प्रकार के दौरे पड़ने वाले रोगों मे अकेले या अपतन्त्रकारि वटी, बृहद् वातचिन्तामणि, ब्राह्मी वटी, सर्पगन्धा योग इनके अनुपान के रूप मे प्रयोग करें |- सि० पो० स० ।
यह क्वाथ मस्तिष्क की धमनी मे रक्तावरोध (Cerebral Artereal Thrombosis ) मे सबसे उपयोगी सिद्ध हुआ है । - श्री विश्वनाथ द्विवेदी वाराणसी।
(ख)मांस्यादि फाष्ट रक्तचाप और अनिंद्रा
मरियाति शीतकषाय – जटामासी के दस ग्राम चूर्ण को ६० मि०लि० खोलते हुये पानी मे डालकरें ढककर रख दें। प्रात जल छानकर पीने से अपस्मार, योषापस्मार, उन्माद, चितभ्रम आदि मानसिक विकारो मे लाभ होता है।
(क्वाथ से इसका तैलांश उड जाता है अत क्वाथ की अपेक्षा, फाण्ट किंवा, शीतकषाय अधिक प्रभावी है।
(ग) मष्तिष्क रोग
जटामासी, दालचीनी, अगर, हब्बे बालसन, रूमीमस्तङ्गी, नेत्रवाला केसर और एलुआ इन औषधियो को समभाग मिला कपडछन पूर्ण करें ।
मात्रा - १॥ से ३ ग्राम तक दिन में २ बार जल के साथ या रात्रि को ३ ग्राम मात्रा देखें ।
उपयोग – यह चूर्ण मस्तिष्कगत (उर्ध्व जत्रुगत - साम दोष) विकार को शमन वा अधोगत करने मे. अच्छा उपयोगी है। विशेषकर मस्तिष्क मे कफ या द्रव वृद्धि हो तो उसे पिघलाकर बाहर निकालता है और लीन द्रव को जला डालता है । मस्तिष्क पीडा, अर्धावभेदक(Migraine), अर्दित(मुंह का लकवा), बायटे आना, जिह्वा का लड- खाना आदि पर लाभदायक है ।
इसको उपयोग स्वतन्त्र रूप से अथवा विशेषकर हुब्बे अयारिज या अन्य शिरो रोगो यथा उन्माद आदि रोगो के लिये बनी औषधियो के मिश्रण मे आता है । जो साम रोगों का शमन भी करता है । — कराबादीन जुकाई